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कलम, तलवार और त्याग [ ११४


कोशिश की कि यह प्रजा को दोष नही है कि वह सरकार से विमुख हो रही है, किन्तु सरकार की नासमझी है कि वह उसे दुःख देकर उत्तेजित कर रही है। आपने जो कुछ कहा वह केवल उन्हीं पत्रों के आधार पर था। पर तत्कालीन भारत-सचिव लॉर्ड जार्ज हौमिलटन ने, लार्ड सैंटस्ट के पत्र के आधार पर आपके बयान और इलज़ाम को खण्डन किया! अब आपके लिए इसके सिर और कोई उपाय न रहा कि या तो तथ्यों और प्रमाणों से अपने अभियोगों को सिद्ध करें या लज्जापूर्वक उनको वापस ले। अस्तु, आप भारत लौटे, पर इसी बीच बंबई सरकार ने पूने के मुखियों की गिरफ्तारी का हुक्म निकाल दिया था और जब आप अदन पहुँचे तो उन्हीं खबर देनेवाले मिंत्रों के पत्र मिले, जिनमें प्रार्थना की गई थी कि हमारे नाम न प्रकट किये जायें। गिरफ्तारी के हुक्म ने उन लोगों को इतनी भयभीत कर दिया था कि वह क़सम खाने को तैयार थे कि वह पत्र हमारे लिखे हुए न थे। मित्रों के इस तरह धोखा देने और कायरपन दिखाने से उस निर्मल, निष्पाप हृदय को जो चिन्ता और व्यथा हुई, उसका अनुमान करना असंभव है।

कुछ दिन तक सबको भय था कि आप सदा के लिए सार्वजनिक ,जीवन से अलग हो जाने को विवश किये जायेंगे। आपको निश्चय हो गया कि उन अभियोगों को जो मैंने सरकार पर लगाये हैं, साबित करना कठिन ही नहीं, स्पष्टतः असाध्य कार्य है। इसलिए अब शराफत और मर्दानगी का अनुरोध यहीं था कि आप भूल-स्वीकार और खेद-प्रकाश के द्वारा अपने उन शब्दों का शोधन-मार्जन करें जिनसे सरकार के आचरण पर धब्बा लगता था। जब अपने दावे को साबित करने का कोई उपाय दिखाई न देता था, तब भी उस पर अड़े रहना आपकी न्यायशील दृष्टि में सरकार का अकारण अपमान करना था। अतं सब पहलुओं पर भली-भाँति विचार कर लेने के बाद आपने अपनी सुप्रसिद्ध क्षमायाचना प्रकाशित की। पर आपके देशवासी जौ वस्तु-स्थिति से पूर्ण परिचित न थे, तुरंत आपसे अप्रसन्न हो गये और