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कलम, तलवार और त्याग
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अधिकारियों का हाथ बँटाया वह आपका ही हिस्सा था। सारा देश आपकी प्रशंसा से गूंजने लगा। लार्ड सैंडस्ट भी जिन्होंने पहले कितनी ही बार आप पर चोटें की थी, इस समय आपको देश-भक्ति और जनता के प्रति सच्ची सहानुभूति के क़ायल हो गये और कौंसिल में आपको धन्यवाद देकर अपनी गौरव बढ़ाया।

लोकहित में आपका अथक प्रयास देखकर देश फिर आपका भक्त बन गया। दक्षिण के लोगो ने सर्वसम्मति से आपको बंबई कौंसिल की सदस्यता पर प्रतिष्ठित किया। यहाँ आपने ऐसी लगन और एकनिष्ठता से देश की सेवा की कि सबके हृदय में आपके लिए आदर- सम्मान उत्पन्न हो गया। ‘बांबे लैण्ड रेवेन्यु' (मालगुजारी) बिल के संबन्ध में जो जोरदार बहसे हुई उनमें आपने प्रमुख भाग लिया और सरकार को विश्वास दिला दिया कि गैरसरकारी सदस्य सरकार के कार्यों की टीका विरोध की नीयत से नहीं करते, किन्तु सद्भावमयं सहयोग की नीयत से करते है। विदेशी सरकारों में सदा यह दोष रहता है कि उनकी हरेक तजजीज के दो पहलू हुआ करते है। सरकार अपने पहले के हानि-लाभ पर तो विचार कर लेती है। पर गरीब प्रजा के पक्ष की सर्वथा उपेक्षा कर जाती है। आपने सदा सच्चे मन से इसकी यत्न किया कि सरकार के सामने आनेवाले प्रत्येक प्रश्न और योजना की प्रजा की दृष्टि से समीक्षा करें और सरकार को उसके अवश्यंभावी परिणाम सुझाये, जिसमें वह प्रजा के विचारों और आवश्यकताओं को जानकर उसकी भलाई की चिन्ता और उपाय करती रहे।

इन महत्वपूर्ण सेवाओं के कारण आपके प्रशंसकों और भक्तों की परिधि और भी विस्तृत हो गई और आप बंबई की ओर से वाइसराय की कौंसिल के गैरसरकारी सदस्य चुने गये। सार्वजनिक जीवन से दिलचस्पी रखनेवाला हरएक आदमी जानता है कि वहाँ आपने अपने कर्तव्यों का पालन कितने परिश्रम, सचाई और जागरूकता के साथ किया। आपकी वक्तृताएँ खोज, बहुभ्रता, ओजस्विता और