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श्री गोपाल कृष्ण गोखले
 


साहस भरी भाषा की दृष्टि से अपना जवाब नहीं रखतीं। यूनिवर्सिटी बिल, और अफीशल सीक्रेट (सरकारी रहस्य-गोपन) बिल के विरोध में आपकी ललकारें अभी तक हमारे कानों में गूंज रही हैं और आशा है कि आपकी ये वक्तृताएँ सदा अपने ढंग की सर्वोत्तम वक्तृ- ताएँ मानी जायँगी। आपके गर्जन से लार्ड कर्जन जैसे शेर की भी बोलती बन्द हो जाती थी। इसमें सन्देह नहीं कि बड़ी कौंसिल में आप ही एक योद्धा थे, जिससे लार्ड महोदय आँखें बचाते फिरते थे। आपकी आलोचनाओं पर अकसर विरोध की नीयत को सन्देह किया गया, पर उसका कारण केवल यह है कि लार्ड कर्ज़न जैसा अभिमानी निरंकुश व्यक्ति अपनी कार्रवाइयों का भंडाफोड़ होना सहन नहीं कर सकता था, इसलिए आपकी नीयत में बुराई दिखाकर अपने दिल की गुबार निकाल लेता था।

आप जैसे विद्वान् और बहुज्ञ व्यक्ति से यह बात छिपी नहीं थी कि विदेशी सरकार सदा जनता की सहानुभूति से वञ्चित और गलत फहमियों का शिकार बनी रहती है। उसको एक-एक क़दम खूब ऊँचा नीचा देखकर धरना होता है। इसी दृष्टि से अपने कभी सरकार को जनसाधारण की निगाह में गिराने या दोषी बनाने की चेष्टा नहीं की, बल्कि जब कभी मौक़ा मिला, बड़े गर्व से उन बड़े बड़े लाभ की चर्चा की जो अंग्रेजी राज्य की बदौलत हमें प्राप्त हैं। अँग्रेजों की प्रमाणि- कता, शुद्ध व्यवहार और नेकनीयती के आप सदा से प्रशंसक थे, पर इसके साथ ही उन दोष-त्रुटियों से भी अनभिज्ञ नहीं थे, जो अंग्रेजी शासन में मौजूद हैं और जिन्होंने उसको बदनाम कर रखा है। आय- का विश्वास था कि यह दोष बदनीयती के कारण ही नहीं है, किन्तु गलत और अनुपयुक्त सिद्धान्तों को काम में लाने के कारण हैं, और उसका कोई उपाय हो सकता है तो यही कि भारतवासियों को शिक्षा-संपादन की प्रगति के साथ-साथ राजकाज मैं “अधिकाधिक भाग लेने का अवसर दिया जाये। उनकी आवाजें अधिक सहानुभूति के साथ सुनी जायँ, इनके गुणों तथा योग्यता का आदर अधिक उदारता के साथ