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कलम, तलवार और त्याग
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किया जाय। और उनकी अपनी जिम्मेदारी आप उठाने की योग्यता उत्तरोत्तर बढ़ाई जाय। निस्संदेह आपका आदर्श बहुत ऊँचा है, पर यही आदर्श सदी से न केवले उच्चाकांक्षी भारतीयों का रहा है, किन्तु उन उदारमना न्यायप्रिय अंग्रेजो को भी रहा है जो भूतकाल में भारतीयों के भाग्य के मालिक थे। जान ब्राइट, ब्रौडला, मेकाले और फास्ट जैसे मानव-हितैषों, उदाराशय पुरुषों के सामने भी यही आदर्श था। लार्ड बेंटिक, और लार्ड रिपन जैसे महानुभावों ने भी इसी आदर्श के अनुसरण का यत्न किया। और राजा राममोहन राय, जस्टिस रानडे और दादा भाई नौरोजी जैसे राष्ट्र के पथ-प्रदर्शक भी इसी आदर्श का पुकार- पुकारकर समर्थन करते गये। मिस्टर गोखले भी इसी आदर्श के उत्साही समर्थकों में थे और जब तक वह शुभ दिन न आये, जब कि सरकार इस आदर्श का अनुसरण करे, प्रत्येक उच्चाकांक्षी देश-हितैषी की प्रथम कर्तव्य यही होगा कि वह इस आदर्श को कार्य-रूप देने के यत्न में संलग्न रहे।

मिस्टर गोखले को जो लोकप्रियता और देश के नेताओं में जो प्रमुख स्थान प्राप्त था, उस पर प्रत्येक व्यक्ति को गर्व हो सकता है। आपने अपने को राष्ट्र पर उत्सर्ग कर दिया था। आपके हृदय में कोई लौकिक कामना थी तो यही कि भारत भूमण्डल के उन्नत राष्ट्रों में सम्मान का पद प्राप्त करे और रारीबी के गहरे गढ़े से निकलकर समृद्धि के सतखंडे पर अपनी पताका फहराये। आप दिन-रात देश की भलाई के, उपाय सोचने में ही डूबे रहते थे। निस्संदेह आप देश के नाम पर बिक गये थे। और यद्यपि सरकार ने आपकी निःस्वार्थं देश- भक्ति, लोकहित की सच्ची कामना तथा न्यायशीलता का आदर किया और आपको सितारेहिन्द की उच्च उपाधि से सम्मानित किया, पर आप इतने विनम्र और शालीन थे कि इस आदर-सम्मान को अपनी योग्यता से अधिक मानते थे। देशहित-साधन की धुन में आपको मान प्रतिष्ठा की तनिक भी इच्छा न थी।

मिस्टर दादाभाई नौरोजी में आपको भरपूर श्रद्धा थी। बंबई में