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श्री गोपाल कृष्ण गोखले
 


उनकी सालगिरह का जलसा हुआ तो उनके गुणगान में अपने बड़ी ओजस्विनी वक्तृता की, जिसके अन्तिम शब्द सोने के पानी से लिखे जाने योग्य हैं-

'मेरे नौजवान दोस्तो! सोचो कि मिस्टर दादाभाई को जीवन कैसा उज्ज्वल आदर्श है जो ईश्वर ने तुम्हारे लिए प्रस्तुत किया है। जिसे उत्साह से तुमने उनको श्रद्धांजलि अर्पित की उसे देखकर हृदय को आनन्द होता है। पर हम इस जलसे को कदापि सफल न समझेंगे, अगर तुम्हारा उभरा हुआ उत्साह इतने ही से संतुष्ट हो जाय। तुम्हारा फर्ज़ है कि उस जीवन से शिक्षा ग्रहण करो और अपनी भीतर-बाहर उसी नमूने पर सँवारने की कोशिश करो जिसमें किसी दिन यह गुण तुम्हारी प्रकृति के भी अंग बन जायें। सज्जनो, सब कुछ जानने और देखनेवाला परमात्मा प्रत्येक देश में समय-समय पर ऐसी आत्माएँ भेजा करता है जो मार्गक्षष्टों को रास्ता दिखायें और जिनके पदचिह्न का अनुसरण कर भूले-भटके बटोही अपने गन्तव्य स्थान को पहुँचे। निस्संदेह, दादाभाई नौरोजी इस अभागे देश की आँखों के तारे हैं। मुझसे कोई पूछे तो मैं जरूर कहूँगा कि आप जैसा ऊँचे विचार का देशभक्त दुनिया के किसी देश में मुश्किल से पैदा हुआ होगा। हममें से संभवतः कोई भी ऐसा न होगा जो उस ऊँचाई तक पहुँच सके। ऐसे बहुत कम होंगे, जिन्होंने चित्त की इतनी दृढ़ता और ऐसी ऊँचा दिमाग पाया हो। पर हम सभी आपके समान जाति-धर्म का भेदभाव न रखकर अपने देश को प्यार कर सकते हैं। हम सभी उस सब लक्ष्य के लिए जिस पर आपने अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया है, कुछ न कुछ यत्न कर सकते हैं। आपके जीवन की सबसे बड़ी शिक्षा यही है कि देश और जाति की सेवा करो। अगर हमारे नौजवान भाई इस शिक्षा से थोड़ा-बहुत भी लाभ उठायेंगे, तो देश का भविष्य निस्सन्देह उज्जवल होगा, चाहे कभी-कभी समाँ अंधेरी ही क्यों न हो जाय।

मिस्टर गोखले को दिल से लगी थी कि श्री दादाभाई नौरोजी अपनी सारी जिन्दगी की कोशिश से जिस कल्याणकारी कार्य का