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श्री गोपाल कृष्ण गोखले
 


दवा की आशा उनसे की जाती है तो दर्द भी उन्हीं से कहना चाहिए। अतः आपने उन नगरों में जाकर ऐसे नपे, प्रभावशाली और ओजस्वी भाषण किये कि सुननेवालों के विचार पलट दिये। स्वदेशी आंदोलन को आपने जोरों से समर्थन किया जो आपके नैतिक बल का प्रमाण है। आपने फरमाया कि बङ्गाल में ब्रिटिश माल के तिरस्कार का कारण यह नहीं है कि बङ्गालियों के विचार विप्लववादी हो गये हैं। इति- हास और अनुभव इसके गवाह हैं कि जैसी राजभक्त और आज्ञापालक जाति भारतीयों की है, वैसी दुनिया की और कोई जाति नहीं हो सकती। जो जाति डेढ़ सौ साल से तनिक भी गरदन न उठाये उसका यकायक बिगड़ उठना अनहोनी बात है, जब तक कि उसके दिल को कोई असह्य चोट न पहुँचे। इसमे सन्देह नहीं कि लार्ड कर्जन की कार्रवाइयाँ, और खासकर उनके आखिरी काम ने बंगालियों को बहुत दुःखी और क्षुब्ध कर दिया है। फिर भी अभी तक कोई ऐसी घटना नहीं हुई है जो किसी सभ्य सरकार के लिए हस्तक्षेप या विरोध को समुचित कारण हो सके। शान्ति और व्यवस्था में तनिक भी अन्तर नहीं पड़ा है। इस स्थिति में दुनिया की कोई और सभ्य जाति ईश्वर जाने क्या क्या उपद्रव मचाती। कोई निष्पक्ष व्यक्ति बंगाल- वालों के धैर्य और संयम की सराहना किये बिना नहीं रह सकता। यह सोचना निरा भ्रम है कि स्वदेशी आंदोलन पर इसलिए जोर दिया जा रहा है कि अंग्रेजों के प्रति उनके मन में शत्रुता का भाव है। बहुत-से ऐंग्लोइडियन पत्र लोगों को बहका रहे हैं। इस गलतफहमी में फंसे हुए लोगों को मालूम हो कि बगलिवालों ने यह तरीका महज़ इसलिए इख्तियार किया है कि अपनी चीख-पुकार और फरियाद ब्रिटिश जनता के कानों तक पहुँचायें और उनकी सहानुभूति प्राप्त करें। जो इस तरीके को बुरा समझना हो वह बतलाये कि हिन्दुस्तानियों के हाथों में और दूसरा कौन सा उपाय है ? क्या भारत-सचिव के दरवाजे पर जाकर दाता की जय' मनाने से काम चलेगा ? या पार्लमेंट में एक-दो प्रश्न कर लेने से उद्देश्य सिद्ध हो जायगा ? अब