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गेरीबाल्डी

ओजक्र गेरीबाल्डी जिसने इटली को गुलामी के गढ़े से निकाला, इतिहास के उन इने गिने महापुरुषों में हैं जो अपनी निस्वार्थ और साहस-भरी देशभक्ति के कारण अखिल विश्व के उपकारक माने गये हैं। वह स्वाधीनता का सच्चा पुजारी था, और जब तक जीत रहा, केवल अपने देश और जाति' को ही उन्नति के शिखर पर पहुँचाने के यत्न में नहीं लगा रहा, अन्य दलित, पीड़ित जातियों को भी अवनति के गर्त से निकालने की कोशिश करता रहा। गेरीबाल्डी का सा उदार और मानव-सहानुभूति से भरा हुआ हृदय रखनेवाले व्यक्ति इतिहास में बिरले ही दिखाई देते है। वह झोपड़े में पैदा हुआ, अपनी सच्ची देश- भक्ति और देशसेवा के उत्साह की बदौलत सारे राष्ट्र का प्यारा बना और आज सारा सभ्य-संसार एक स्वर से उसका गुणगान कर रहा हैं। इसमें संदेह नहीं कि उसमें कुछ कमजोरियाँ थीं-ऐसा कौन-सा मनुष्य है जो मानव-स्वभाव की दोष-त्रुटियों से सर्वथा मुक्त हो ? पर इन कमजोरियों से उसके यश और कीर्ति में तनिक भी कमी नहीं होने पाई। उसकी नेकनीयती और निस्वार्थता पर कभी किसी को संदेह करने का साहस नहीं हुआ। वह चाहता तो उस लोकप्रियता की बदौलत जो उसे प्राप्त थी, धन-वैभव की चोटी पर ही न पहुँच जाता, राजदण्ड और राजमुकुट भी धारण कर लेता। पर उसका अन्तःकरण ऐसी स्वार्थमय कामनाओं से निर्लिप्त था। उसका यत्न सफल हो गया। इटली ने पराधीनता के जुए को उतार फेंका, तो वह चुप- चाप अपने घर लौट आया और दुनिया के झगड़ों से अलग होकर शेष जीवन खेती-बारी में काट दिया। निस्संदेह, गेरीबाल्डी का-सा