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कलम, तलवार और त्याग
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बैठा देनेवाले विचारों में डूबा हुआ था कि अचानक अपनी प्यारी बेटी की ज़ोर की चीख ने उसे चौंका दिया। देखता है, तो एक जंगली बिल्ली उसके हाथ से रोटी छीने लिये जा रही है और वह बेचारी बड़े करुण स्वर में रो रही है। हाय! बेचारी क्यों न रोये? आज पाँच फ़ाकों के बाद आधी रोटी मिली थी, फिर नहीं मालूम कै कड़ाके गुजरेंगे यह देखकर राणा की आँखों में आँसू उमड़ आये। उसने अपने जवान बेटों को रंगभूमि में अपनी आँखो से दम तोड़ते देखा था, पर कभी उसका हृदय कातर न हुआ था, कभी आँखों में आँसू ने आये थे। मरना-मारना तो राजपूत का धर्म है। इस पर कोई राजपूत क्यों आँसू बहाये। पर आज इस बालिका के विलाप ने उसे विवश कर दिया। आज क्षण भर के लिए उसकी दृढ़ता के पाँव डिग गये। कुछ क्षण के लिए मानव-प्रकृति ने वैयक्तिक विशेषत्व को पराजित कर दिया। सहृदय व्यक्ति जितने ही शूर और साहसी होते हैं, उतने ही कोमलचित्त भी होते हैं। नेपोलियन बोनापार्ट ने हजारों आदमियों को मरते देखा था और हज़ारों को अपने ही हाथों ख़ाकपर सुला दिया था। पर एक भुखे, दुबले, कमज़ोर कुत्ते को अपने मालिक की लाश के इधर-उधर मँडराते देख उसकी आँखों से अश्रुधारा उमड़ पड़ी। राणा ने लड़की को गोद में ले लिया और बोला—धिक्कार है। मुझको कि केवल नाम के राजत्व के लिए अपने प्यारे बच्चों को इतने क्लेश दे रहा हूँ। उसी समय अकबर के पास पत्र भेजा कि अब कष्ट सहे नहीं जाते, मेरी दशा पर कुछ दया कीजिए।

अकबर के पास यह संदेश पहुँचा तो मानो कोई अप्रत्याशित वस्तु मिल गई। खुशी के मारे फूला न समाया। राणा का पत्र दरबारियों को सगर्व दिखाने लगा। मगर दरबार में अगुणज्ञ लोग बहुत कम होंगे, जिन्होंने राणा की अधीनता के समाचार को प्रसन्नता के साथ सुना हो। राजे-महाराजे यद्यपि अकबर की दरबारदारी करते थे, पर स्वजाति के अभिमान के नाते सबके हृदय में राणा के लिए सम्मान का भाव था। उनको इस बात का गर्व था कि यद्यपि हम पराधीन हो