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मौ॰ वहीदुद्दीन 'सलीम'

वहीदुद्दीन नाम, 'सलीम' उपनाम, पिता का नाम हाजी फ़रीदुद्दीन साहब, पानीपत जिला करनाल (पंजाब) के प्रतिष्ठित सैयदकुल के थे। उनके दादा मुलतान से स्थानान्तर कर पहले पाक पहन पहुँचे जहाँ हाजी फ़रीदुद्दीन साहब का जन्म हुआ। फिर पानीपत आये और इसी कसबे को वासस्थान बनाया। हाजी साहब पानीपत के सुप्रसिद्ध महात्मा हज़रत बू अली शाह क़लन्दर के मज़ार के मुतवल्ली (प्रबंधक) थे। बहुत पूजा-पाठ करनेवाले और यंत्र-मंत्र में प्रसिद्ध थे। बिहार के स्थावान क़सबे के पूजनीय सन्त मौलना सैयद ग़ौस अलीशाह लबे पर्यटन के बाद जब पानीपत पधारे तो हाजी साहब ने आग्रह करके उनको क़लन्दर साहब के हाते में ठहराया और १८ बरस तक उनकी सेवा की। मौलाना हाजी साहब पर बहुत कृपा रखते थे। आप और आपके मेहमानों के लिए दोनों वक्त हाजी साहब के घर से खाना आता था। हाजी साहब के यहाँ साधारणतः लड़कियाँ होती थीं, पुत्र सुख से वंचित थे। हज़रत की दुआ से उनको दो पुत्र प्राप्त हुए। बड़े बेटे का नाम वहीदुद्दीन और छोटे का हर्मदुद्दीन रखा गया। यही बड़े बेटे हमारी इस चर्चा के विषय मौलाना सलीम साहब हैं। क़सबे की एक शरीफ उस्तानी ने जो आया शम्मुन्निसा के नाम से प्रसिद्ध थीं, मौलाना को कुरान शरीफ कंठ कराया। इसके बाद खुद मौलाना हज़रत ग़ौस अली ने उनको सरकारी स्कूल में भरती कराया। हाजी साहब की परलोक-यात्रा के बाद उनकी पढ़ाई-लिखाई की निगरानी खुद हज़रत ही ने की। मौलाना को लड़कपन से ही फ़ारसी का शौक था। अपनी निज की कोशिश से फ़ारसी की किताबें पढ़ने