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कलम, तलवार और त्याग
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दोनों नियम अरबी और दूसरी सामी (सिमेटिक) भाषाओं में नहीं हैं। संयुक्त पद बनाने की जो विधियाँ उर्दू में काम में लाई जाती हैं- वे सब बताई हैं, फिर सब प्रकार की परिभाषाएँ बनाने के सिद्धान्त उदाहरण-सहित समझाये हैं। इन सिद्धान्तों को सब अधिकारी विद्वानों ने समीचीन मान लिया है और युक्त अनुवाद-विभाग में प्रायः उन्हीं के अनुसार पारिभाषिक शब्द बनाये जाते हैं।

सच यह है कि यह ग्रंथ लिखकर मौलाना ने उर्दू भाषा का इतना बड़ा उपकार किया है जिसका ऋण आनेवाली शताब्दियों तक चुकाया जायगा। पारिभाषिक शब्द बनाने की पद्धति प्रस्तुत करके उर्दू भाषा के जीवित रहने का साधन जुटा दिया और अब निश्चय ही यह एक ज्ञान विज्ञान-सम्पन्न भाषा बन जायगी और इसमें जीवित रहने की योग्यता उत्पन्न हो जायगी। मेरा तो विश्वास है कि इस पुस्तक ने मौलाना सलीम के नाम को अमर कर दिया।


उसमानिया यूनिवर्सिटी से संबन्ध

उसमानिया यूनिवर्सिटी खुलने पर मौलाना उर्दू-साहित्य के असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हुए। प्रोफेसर का पद इस विश्व- विद्यालय में उन्हीं लोगों को दिया जाता है जो यूरोप की डिग्री प्राप्त कर चुके हों, पर चार साल बाद मौलाना अपवाद रूप में प्रोफेसर बना दिये गये। उस समय आपकी अवस्था ५० साल के लगभग थी। तब से अन्तकाल तक इसी पद पर रहे।


पारिण्डत्य

मौलाना ने अरबी के संपूर्ण पाठ्य-विषय और ग्रन्थ पढ़े थे। फारसी के उच्चतम कोटि के ग्रन्थ पढ़े और पढ़ाये थे। नवीन पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान उर्दू अनुवादों के द्वारा और अंग्रेजी जाननेवालों से पुस्तकें पढ़वाकर प्राप्त किया था। जब वह सर सैयद के साहित्यिक सहकारी नियुक्त हुए तो सर सैयद पर उनकी सर्वज्ञता का सिक्का बैठ