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कलम, तलवार और त्याग
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अपनी नासमझी का ही सबूत नहीं देते, सरकार की नीयत, न्याय और बुद्धि को भी बदनाम करते हैं। यद्यपि दुःख के साथ कहना पड़ता है। कि सरकार की अनुग्रह-नीति कभी कभी इस धारण का पोषण करती हुई दिखाई देती है कि स्वाधीन-वृत्ति और न्यायशीलता की उसके लिए कुछ अधिक आवश्यकता नहीं।

डाक्टर भांडारकर में एक बड़ा गुण यह था कि वह-स्वपाण्डिन्य, के अभिमान और पक्षपात से सर्वदा मुक्त थे। अन्य विद्वानों की तरह उन्होने अपने समकालीन ऐतिहासिकों और पुरातत्वज्ञों के प्रति कभी अनादर का भाव नहीं रखा, किन्तु आरंभ से ही उनकी यह नीति रही कि दूसरों के मन में भी खोज और अन्वेषण की रुचि उत्पन्न करें, उनका उत्साह बढ़ायें और परामर्श तथा पृथप्रदर्शन से उनकी सहायता करते हैं। जिसमें उनके बाद इस विषय से अनुराग रखनेवालों का टोटा न पड़े।

सारांश, डाक्टर भांडारकर का व्यक्तित्व भारत के लिए गर्व करने की वस्तु थी। आपने साबित कर दिया कि भारतवासी ज्ञान-विज्ञान के गहअंगों में भी पाश्चात्य विद्वानों के कंधे से कंधा भिड़ाकर चल सकते हैं। जर्मनी, फ्रांस, इंगलैंड सभी देशों के विद्वान आपके भक्त हैं, और हमारे लिए, जिन्हें उनके देशवासी होने का गर्व हैं, उनका जीवन एक खुली हुई पुस्तक है जिसमें मोटे अक्षरों में लिखा हुआ है---‘अध्यवसाय, व्यवस्था और ऊँचा लक्ष्य सफल जीवन के रहस्य हैं। जस्टिस चंदावरकर ने जिन्हें आपका शिष्य होने का गौरव प्राप्त है, आपके विषय में लिखा है--

(डाक्टर) सर भांडारकर ने विविध बाधाओं के रहते हुए भी अपने बर्तावों में कभी लगाव नहीं रखा। आपने सदा सत्य और न्याय का पक्ष लिया, पर सत्य पर मृदु-मधुर शब्दों की चाशनी चढ़ाकर असत्यप्रिय जनों के अनुरंजन का यत्न नहीं किया। आप ब्रह्मसमाज के अनुयायी हैं और जात-पाँत, छूत-छात के विभेद को राष्ट्रीयता का विरोधी और विघातक मानते हैं। भगवद्गीता और