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कलम, तलवार और त्याग
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सम्मेलन में जाइए, वह अपने नियत समय से घण्टे-आध घण्टे बाद 'अवश्य होगी। रेल की यात्रा ही को लीजिए। या तो हम दो-ढाई घण्टे पहले स्टेशन पर पहुँच जाते हैं या इतना कम समय रह जाने पर कि दौड़कर गाड़ी में सवार होना पड़ता है। जस्टिस बद्रुद्दीन वक्त की पाबन्दी की खास तौर से ध्यान रखते थे। थोड़ा-सा व्यायाम वह नित्य करते थे। कितना ही आवश्यक कार्य उपस्थित हो, इस काम मैं अन्तर न पड़ता था। हाँ, बीमारी की हालत मैं लाचारी थी। बल्कि जिस दिन काम की भीड़ अधिक होती थी उस दिन वह नित्य के समय से कुछ पहले ही व्यायाम आरम्भ कर देते थे। शाम को हाईकोर्ट से उठकर कींसरोड के छोर तक पैदल जाना उनका नित्य- नेम था और इसमें उन्होने कभी अन्तर नहीं पड़ने दिया। ऐसे नियम- बद्ध और समानगति से चलनेवाले दृष्टान्त जीवन में बहुत कम मिलते हैं।

११ अगस्त १९०६ ई० को आप परलोकगामी हुए और भारतमाता के ऐसे सपूत बेटे की यादगार छोड़ी जिस पर वह सदा गर्व करेगी।

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