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'मौ० अब्दुलहलीम ‘शरर'

मौलाना अब्दुलहलीम शरर' के पिता हकीम तफ़ज्जुल हुसैन साहब साधुप्रकृति, धर्मनिष्ठ मुसलान थे। हनफी सम्प्रदाय के अनुयायी, सूफी सिद्धान्तों के माननेवाले, लखनऊ के झँवाई टोले में रहते थे। इसी मकान में ग़दर के दो साल बाद १७ जमादी उस्सानी सन् १२७५ हिज्री को दो बजे सुबह मौलाना शरर ने जन्म लिया।

हकीम तफ़ज्जु़ल हुसैन मध्यम श्रेणी के व्यक्ति थे और शाही मुंशियों मैं नौकर थे। फिर भी लड़के को पढ़ाने-लिखाने की पूरी कोशिश की। ६ साल की उम्र में मौलाना की पढ़ाई का सिलसिला शुरू हुआ। साल भर तक माता के पास पढ़ते रहे और कुरान का एक पारा भी समाप्त न हुआ। बचपन में वह बड़े ही नटखट थे। माता ने एक बार किसी बात पर क्रुद्ध होकर मारा तो इन्होंने गुस्से में उनकी उँगली चबा ली। मौलाना आठ बरस के हुए तो उनके पिता कलकत्ते में मुंशी उस्सुलतान के दफ्तर में नौकर होकर वहाँ जाने लगे और इन्हें भी साथ लेते गये। वही उनकी पढ़ाई होने लगी। पहले हाफिज़ इलाहीबख्श से साल भर में कुरान समाप्त किया। फिर दो बरस में 'मैयते-आमिल गुलिस्ताँ और बोस्ताॅ पढ़ी। मुल्ला बाक़र से ‘हिदायतुलनहो', काफिया' और ‘मुल्लाजामी' का अध्ययन किया। मुंशी अब्दुललतीफ से शरह बक़ाया' और खुश-नवीसी (लिपि-कला) सीखी। मौलाना तबातबाई से भी कुछ अरबी की किताबें निकाली। हकीम मशीह से हकीमी पढ़ी और १५ साल की उम्र में शाही मुंशिये में अपने पिता की जगह पर नौकर हो गये। उनके पिता लखनऊ चले आये।