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रेनल्ड्स
 


कला का अभ्यास करे। हडसन उस समय मुखाकृति के चित्रण में प्रसिद्ध था, उसका शिष्य हो गया। पर हडसन में इसके अतिरिक्त और कोई योग्यता न थी। रेनाल्ड्स जैसी प्रतिभावान् बालक जिसके हृदय मैं उधाकांक्षा और उमंगों का स्रोत उफन रहा था, उसकी शिक्षा से क्या लाभ उठा सकता था। हडसन ने उसकी प्रवृत्ति का अन्दाज़ा न पाया। मध्यम श्रेणी के एक इटालियन चित्रकार के चित्रों की उसले नक्कल कराने लगा। रेनाल्ड्स ने इस काम को ऐसी खूनी से किया कि असल और नकल में बागबर भी अन्तर न रहा। फिर भी उसने ज्यों-त्यों करके यहाँ दो बरस काटे। इस अरसे में उसने बहुत से चित्र बनाये। कहते हैं कि उनमें उसके भाव यश, झलक मौजूद है। शिष्य की कुशलता देखकर गुरु के हृदय में ईष्या की आग जलने लगी। अन्त में एक चित्र, जिसके निर्माण में रेनाल्ड्स ने अपनी सारी कला लगा दी थी, दोनों के बिलगाव का कारण हुआ।' उसने समझ लिया कि गुरु जी को जो कुछ सिखाना-पढ़ाना था, सिखा-पढ़ा चुके। अपने क़सबे को लौट आया। इस विच्छेद को वह अपने लिए बड़ा शुभ माना करता था, क्योकि कुछ दिन वह और हडसन की शागिर्दी में रहता तो उसको भी उसी नक्क़ाली की आदत लग जाती, जो सच्ची चित्रकला की जानलेवा है। इस बेकारी में उसने तीन साल काटे, पर सच यह है कि इसी अभ्यास ने उसे रेनाल्ड्स बना दिया। इस समय चित्र बनाने के सिवा उसे और कोई काम न था। इसी काल में उसने प्रकृति की पुस्तक का भी अध्ययन किया जो अगे चलकर उसके यश और सफलता में बड़ा सहायक हुआ।

जब वह हडसन शिष्यता में था, एक दिन बाजार में नीलाम देखने गया। बहुत से आदमी मण्डलाकार खड़े थे। अचानक ‘पोप, पोप, का शोर हुआ और सुप्रसिद्ध कवि पोप आता दिखाई दिया। लोग सम्मान-प्रकाश के लिए ,इधर-उधर हटने और झुकझुककर अभिवादन करने लगे। जिसके पास से होकर वह गुजरता, वह