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कलम, तलवार और त्याग
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वह उसका हाथ छू लेता, जब रेनाल्ड्स की बारी आई तो पोप ने स्वयं उसके दोनों हाथ पकड़कर हिला दिये। रेनाल्ड्स सदा गर्व के साथ इस घटना का वर्णन किया करता था। इससे प्रकट होता है कि विद्वानों के लिए उसके हृदय में कितना आदर था और उस काल के जनसाधारण पण्डितों और कवियों के साथ कैसे प्रेम और आदर का बर्ताव किया करते थे।

रोम नगर सदा से चित्रकारों का तीर्थ स्थान रहा है। यही नगर है जहाँ यूरोपीय चित्रकला की नींव डाली गई थी। पोपलियो के समय से यह नगर नामी चित्रकारों का वास रहा है। राफाएल, माइकेल एंजेलो क्रेजियो जिनको चित्रविद्या का विश्वकर्मा कह सकते हैं, इसी पुनीत भूमि से उत्पन्न हुए थे। ल्यूनार्डो और टेशीन इसी बस्ती के बसने वाले थे। उन्होंने जो तस्वीरें ढालकर वहाँ की चित्रशालाओं में रख दीं, वह आज तक बेजोड़ और चित्रकला की इयत्ता समझी जाती हैं। जैसे कालिदास, होमर और फिर्दैसी का काव्य अनुकरण से परे है, उसी तरह ये चित्र भी नकल की नोच-खसोट से सुरक्षित हैं। सारे यूरोप के चित्रकला-प्रेमी इन चित्रो को देखने जाते हैं। कोई चित्रकार उस समय तक चित्रकार नहीं बन सकता, जब तक इन चित्रों का भली-भाँति अध्ययन न कर ले। यद्यपि उन पर चार- चार सदियों की धूल पड़ी हुई है। पर उनकी रंगत की ताजगी में तनिक भी अन्तर नहीं पड़ा है, मालूम नहीं कहाँ से ऐसे रंग लाये हैं। जो मद्धिम होना जानते ही नहीं। रेनाल्ड्स से रोम की बड़ी बड़ाई सुनी थी और उसके दिल से लगी थी कि किसी तरह वहाँ की सैर करे, पर पास में पैसा न होने से लाचार था। आखिर उसके एक नाविक मित्र ने उसे रोम की सैर का निमन्त्रण दिया और दोनों दोस्त चल खड़े हुए। पहले पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन की सैर की, फिर जबलुल तारिक़ (?) गये और यहाँ से रोम पहुँचे। इस नगर ने पहले पहल,उसके चित्त पर जो प्रभाव डाले, उनको उसने विस्तार से वर्णन किया है। कहता है-