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रेनाल्ड्स
 


कारण तो सभवतः यह होगा कि उस समय इंगलैंड में कुछ क़द्र थी तो इसी की, जैसा कि होगार्थ के एक चित्र से प्रकट होता है। दूसरा कारण यह था कि जैसा कि उसने स्वभावतः वह ऊँची कल्पना और उपज न पाई थी, जिसके बिना धार्मिक और ऐतिहासिक चित्र बनाना संभव नहीं है।

रोम से वापस आने पर वह कुछ दिनों देश में विचरण करता रहा। फिर लंदन में बस गया। जब उसने दो-एक चित्र बनाये तो चित्रकारों ने हल्ला मचाना शुरू किया, क्योंकि उन चित्रों में प्रचलित रुचि और गति का अनुसरण नहीं किया गया था। पर यह हो, हल्ला अधिक दिन न टिक सका। ग्राहक जब सौदा अच्छा देखता है, तब खुद मोल लेता है। उसे फिर इसकी परवाह नही होती कि दूसरे कलाकार उसके विषय में क्या कहते हैं। संभ्रान्त पुरुष और स्त्रियाँ दल के दल पहुँचने लगीं। हर रईस की यह इच्छा होती थी कि चित्र कार मुझे वीर पुरुष या दार्शनिक बनाकर दिखाये। प्रत्येक भद्र महिला चाहती थी कि मैं स्वर्ग की अप्सरा बना दी जाऊँ, मेरे चेहरे की झुर्रियाँ तनिक भी दिखाई न दें। रेनाल्ड्स की निगाह गजब की पैनी थी, सबकी इच्छा पूरी कर देता था। वह कहा करता था कि शबीह बनाने वालों के लिए ऐसे स्वभाव की आवश्यकता होती है। जैसा डाक्टरों को होता है। उन्हें हर बात में अपने ग्राहको का मन रखना पड़ता है।

सन् १७३४ ई० में रेनाल्ड्स की डाक्टर जानसन से मित्रता हो गई। वह डेबन शायर गया हुआ था। वहाँ उसे एक मित्र के यहाँ डाक्टर महोदय का लिखा हुआ कवि वाल्टर सैवेज की जीवनचरित दिखाई दिया। इसमें ऐसा मन लगा कि उसने उसे खड़े-खड़े समाप्त करके दम लिया। उस समय से उसके मन में उस रोचक पुस्तक के रचयिता के दर्शन करने की आकांक्षा उत्पन्न हो गई। संयोगवश एक रईस का आकस्मिक मृत्यु के अवसर पर दोनों का मिलन हो गया। उस व्यक्ति से बहुतों का उपकार होता था। लोग उसके हृदय और