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कलम, तलवार और त्याग
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दे रहा है और आँखों से किसी को छेदने, किसी से कोसे जाने और गालियाँ सुनने की लालसा टपक रही है। दूसरा चित्र मैकबेथ' का है। जिसमें सरोवर और चुडै़लों की दृश्य दिखाया गया है। इस रंग में उसके और भी उत्तमोत्तम चित्र विद्यमान हैं।

सर जोशुआ रेनाल्ड्स अब ६६ बरस का हो गया थी और यद्यपि धन-मान में कोई कमी न हुई थी पर दोस्तों के उठ जाने को दुःख इनसे मिलनेवाले सुख से बहुत अधिक था। गोल्डस्मिथ, जानसन, बर्क, गैरिक सब एक-एक करके साथ छोड़ते गये। यहाँ तक कि १७८९ ई० में उसके नाम भी काल का बुलावा आ पहुँचा। आँखों की ज्योति जाती रही। १७९२ ई० में उसने इस नाशमान् जगत् को त्यागकर परलोक को पयान किया।

उच्च कोटि की बहुसंख्यक शबीहें ही रेनाल्ड्स की यादगार नहीं हैं, उसकी विद्वत्तापूर्ण वक्तृताएँ और कवित्वमय तथा ऐतिहासिक वित्र भी उसकी कलानिपुणता का सिक्का सदा लोगों के दिलों पर बिठाते रहेंगे। भाषण से इसका उद्देश्य उत्साही नवयुवक चित्रकारों के हृदयों पर इस कला की महत्ता स्थापित करना, उनमें प्रिय और नियमित अभ्यास की आदत डालना और चित्र के अच्छे सिद्धान्तो से परिचित कराना था। क्या-क्या उपाय किये जायँ, किन-किन नियमविधियों का अनुसरण किया जाय, धूप-छाँह की किस प्रकार व्यवहार किया जाय किं चित्रों में वही चमत्कार उत्पन्न हो जाय, जो पुराने उस्तादों की कृतियों में पाया जाता है। वह केवल प्रतिभा और प्रवृत्ति का ही क़ायल न था। उसका उपदेश था कि इस कला में निपुणता प्राप्त करने के लिए दिन-रात जुटे रहना, अनवरत चिन्तन और उस्तादों की कृतियों में सच्ची श्रद्धा रखना आवश्यक है।