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रणजीतसिंह
 


सड़को की दोनों ओर खड़े हो जाते, और उन्हें इस दशा में देखकर करुणा और नैराश्य के आँसू बहाते थे। अंत को मौत का परवाना आ पहुँचा और महाराज ने राजकुमार खड्गसिंह को बुलाकर अपना उत्तराधिकारी तथा राजा ध्यानसिंह को प्रधान मंत्री नियत किया। २५ लाख रुपया गरीब मुहताजों में बाँटा गया! और संध्या समय जब रनिवास में दीपक जलाये जा रहे थे, महाराज के जीवनदीप का निर्वाण हो गया।

ध्यानसिंह को प्रधान मंत्री बनाना महाराज की अन्तिम और महा अनर्थकारी भूल थी। शायद उस समय अन्य शारीरिक-मानसिक शक्तियों के सदृश उनकी विवेक शक्ति भी दुर्बल हो गई थी। महाराज की मृत्यु के बाद ६ साल तक उथल-पुथल और अराजकता का काल था। खड्गसिंह और उसका पुत्र नौनिहालसिंह दोनों क़तले कर दिये गये, फिर शेरसिंह गद्दी पर बैठी। उसकी भी वही गति हुई। और सिख-सिंहासन को अन्तिम अधिकारी अंग्रेज सरकार को वृति-भोगी बन गया। इस प्रकार वह सुविशाल प्रसाद जो रणजीतसिंह ने निर्माण किया था, दो ही वर्षों में धराशायी हो गया।