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राणा जंगबहादुर

नैपाल के राणा जंगबहादुर उन मौका-महल समझने वाले, दूरदर्शी और बुद्धिशाली व्यक्तियों में थे जो देशों और जातियों को पारस्परिक कलह और संघर्ष के गर्त से निकालकर उन्हें उन्नति के पथ पर लगा देते हैं। वह १९ वीं सदी के आरंभ में उत्पन्न हुए! और यह वह समय था जब हिन्दुस्तान में ब्रिटिश सत्ता बड़ी तेजी से फैलती जा रही थी। देहली का चिराग गुल हो चुका था, मराठे ब्रिटिश शक्ति का लोहा मान चुके थे और केवल पंजाब का वह भाग जो महाराज रणजीतसिंह के अधिकार में था, उसके प्रभाव से बचा था! नैपाल भी अंग्रेज़ी तलवार का मजा चख चुका था और सुगौली की सन्धि के अनुसार अपने राज्य का एक भाग अंग्रेज़ी सरकार के नज़र कर चुका था। वही भाग जो अब कुमायूँ की कमिश्नरी कहलाता है। ऐसे नाजुक वक्त में जब देशी राज्य कुछ तो गृहयुद्धों और कुछ अपनी कमजोरियों के शिकार होते जाते थे, नैपाल की भी वही गति होती, क्योकि उस समय वहाँ की भीतरी अवस्था कुछ ऐसी ही थी जैसी देहली की सैयद-बन्धुओं के समय मैं या पंजाब की रणजीतसिंह के निधन के बाद हुई थी। पर राणा जंगबहादुर ने इस नाजुक धी मैं नैपाल के शासन प्रबन्ध की बागडोर अपने हाथ में ली और गृह-कलह तथा प्रबन्ध-दोषों को मिटाकर सुव्यवस्थित शासन स्थापित किया। इसमें सन्देह नहीं कि इस काम में वह सदा न्याय और सत्य पर नहीं रह सके। अकसर उन्हें चालबाजियो, साजिशों यहाँ तक किं गुप्त हत्याओं तक का सहारा लेना पड़ता था, पर संभवतः इस परिस्थिति में वही नीति उपयुक्त थी। नेपाल की अवस्था