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३१ ]राणा जंगबहादुर
 


उस समय ऐसी हो गई थी जब मानवता, सहनशीलता अथवा क्षमा दुर्बलता मानी जाती है। और जब भय और त्रास ही एक मात्र ऐसा साधन रह जाता है जो उत्पातियों और सिरफिरों को काबू में रख सके। पंजाब के अन्तिम काछ में जंगबहादुर जैसा उपाय-कुशल और हिम्मतवाला कोई आदमी वहाँ हेाता तो शायद उसका अन्त इतनी आसानी से न हो सकता। जंगबहादुर को नेपाल का बिस्मार्क कह सकते हैं।

नेपाल राज्य की नींव १६ वीं शताब्दी में पड़ी। अकबर के हाथों चित्तौड़ के तबाह होने के बाद राणा वंश के कुछ लोग शान्ति की तलाश में यहाँ पहुँचे और यहाँ के कमजोर राजा को अपनी जगह उनके लिए खाली कर देनी पड़ी। तबसे वही घराना राज्यारूढ़ है, पर धीरे-धीरे स्थिति ने कुछ ऐसा रूप प्राप्त कर लिया कि राज्य के रह्ता-कर्ता प्रधान मन्त्री या ‘अमात्य' हो गये। मन्त्री जो चाहते थे, करते थे; राजा केवल बिखरी हुई शक्तियों को एकत्र रखने का एक धन मात्र था। मन्त्रियों के भी दो वर्ग थे---एक 'पांडे' का दूसरा 'थापा' का और दोनो में सदा संघर्ष होता रहृता था। जब पांडे लोग अधिकारारूढ़ होते तो थापा घराने को मिटाने में कोई बात उठा न रखी जाती, और इसी प्रकार अब थापा लोग अधिकारी होते तो पांडे वंशवालो की जान के लाले पड़ जाते।

जंगबहादुर यों तो राजकुल के थे, पर उनकी रिश्तेदारियाँ अधिकतर थापा धराने में थीं। जब वह उस समय की प्रचलित पढ़ाई पूरी कर चुके तो उन्हें एक ऊँची पद प्राप्त हुआ। उस समय थापा-कुल अधिकारारूढ़ था और भीमसेन थापा अमात्य थे। महाराज ने मन्त्री की बढ़ती हुई शक्ति से डरकर उन्हें एक झूठे अभियोग में कैद कर दिया। भीमसेन ने जेलखाने में ही आत्महत्या कर ली। उनके मरते ही उनके कुटुंबिया और, सबन्धियों पर आफत आ गई। उनका भतीजा जेनरल मोतबरसिंह भागकर हिन्दुस्तान चला आया। जंगबहादुर और उनके पिता भी पदच्युत कर दिये गये। यह बात सन्