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कलम, तलवार और त्याग
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युवराज की हत्या करना चाहती थीं। क्योंकि इसके बिना उनके अपने बेटे के लिए कोई आशा न थी। उन्होंने जंगबहादुर से इशारे में इसकी चर्चा भी की, पर जंगबहादुर बराबर अनजान बने रहे। इशारों से काम न चलते देख रानी ने उनके पास इस आशय का पत्र लिखा। जंगबहादुर ने उसे अपने पास रख लिया और रानी को मुंहतोड़ जवाब लिख भेजा जिसे पाकर रानी उनसे निराश ही नहीं हो गईं, उनकी जान की भी दुश्मन हो गईं, और उनकी हत्या का षड्यन्त्र रचने लगीं। गगनसिंह का लड़का वजीरसिंह इस काम में उनका दाहना हाथ था। साजिश पूरी हो गई। उसका हरएक सदभ्य अना-अपना काम पूरा करने को तैयार हो गया। आपस में कौ़ल-करार भी हो गये। कसर इतनी ही थी कि जंगबहादुर रानी साहिबा के महल में बुलाये जायँ। पर ऐन मौके पर जंगबहादुर की ताड़नेवाली निगाह ने सारी योजना भाँर ली और भंडाफोड़ हो गया। उन्होंने तुरन्त सेना बुलाई और उसे लिये रानी लक्ष्मीदेवी के महल पर जा धमके। घातक अपनी धारा में बैठे हुए थे, कि जंगबहादुर ने पहुँचकर उन्हें घेर लिया। उन्हें जान बचाने का मौका भी न मिला। कितने ही वहीं तलवार के घाट उतार दिये गये। रानी साहिबा रक्त-सने हाथों सहित पकड़ ली गईं। उन पर युवराज और प्रधान मन्त्री की हत्या की साजिश का अभियोग लगाया गया। प्रमाण प्रस्तुत ही थे, रानी को बचने का मौक़ा न मिला। मन्त्रिमण्डल के सामने यह मामला पेश हुआ और रानी को सदा के लिए नैपाल से निर्वासन का दण्ड दिया गया। उनके दोनों बेटों ने उनके साथ रहने में ही जान की खैरियत समझी। जंगबहादुर ने इसमें रुकावट न की, बल्कि बड़ी इदारता के साथ रानी साहिबा के खर्च के लिए खजाने से १८ लाख रुपया देकर उन्हें बिदा किया। इस घटना से प्रकट होता है कि जंगबहादुर कैसे जीवट और कलेजे के राजनीतिज्ञ थे और स्थिति को किस प्रकार अपने अनुकूल बना लेते थे। महारानी लक्ष्मी देवी की शक्ति और प्रभाव को दम भर में मिटा देना कोई आसान काम न था। जिस रानी के भय से सारी