पृष्ठ:कलम, तलवार और त्याग.pdf/४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४७ ]
अकबर महान
 


पर डर है कि कहीं प्रसवपीड़ा का सामना न करना पड़े।

खैर, ख़ुदा-ख़ुदा करके किसी तरह यह असहाय क़ाफ़िला सिंध के सपाट जंगलों को पार करता हुआ अमरकोट पहुँचा और वहाँ पाँव रखने को जगह भी मिली, पर भेड़िया बने हुए भाई सब ओर से ताक में लगे हुए थे। इस कारण उसे पत्नी को वहीं छोड़ उनके मुकाबले के लिए रवाना होना पड़ा। इस समय बेचारी हमीदा बानू की जो दशा होगी, ईश्वर दुःसमन को भी उसमें न डाले। न तन पर कपड़ा, न पेट के लिए खाना, न कोई मित्र, न सहायक, यहाँ तक कि पति भी ज्ञान के सौदे में लगा हुआ, उस पर पराया देश और पराये लोग। पर जिस तरह गहरे सूखे के समय सब ओर से काली घटाए” उठकर क्षणभर में तृण-से रहित धरती को शस्य-श्यामला बना देती हैं या अचानक घनघोर अन्धकार में दल-बादल फटकर भूमण्डल को प्रभाकर की प्रखर किरणों से आलोकित कर देता है या जिस तरह-

सितारा सुबहे इशरत का शबे मातम निकलता है। *[१]

उसी तरह तारीख ५ रजब सन् ५४४ हिज्री (१४ अक्तूबर १५४२ ई॰) रविवार की रात्रि में उस मंगल नक्षत्र का उदय हुआ जो अन्त में दुनिया पर सूरज बनकर चमका।

अकबर जैसे दुर्दिन में जन्मा था वैसी ही असहाय अवस्था में उसका बचपन भी बीता। अभी पूरा एक बरस का भी न होने पाया था कि मिरजा असकरी के विश्वासघात के भय से माँ-बाप का साथ छूटा और निर्दय चचा के हाथ पड़ा। पर भगवान भला करें उसकी बीवी सुलतान बेगम और अकबर की दाइयों माहम बेगम और जीजी अक्का की कि बच्चे को किसी प्रकार का कष्ट न होने पाया। जब अकबर दो साल से कुछ ऊपर हुआ तो हुमायूँ ने फिर काबुल को विजय किया और उसे पिता के दर्शन नसीब हुए। पर अभी पाँच बरस का न हुआ था कि फिर जालिम कामरान के हाथ पड़ गया और जब हुमायूँ काबुल के क़िले

  1. * दुःख-निशा के अवसान पर सुख-सूर्य का उदय होता है।