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कलम, तलवार और त्याग
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की प्रदर्शनियों का मूल मान सकते हैं। और प्रकार से भी उसे व्यापार व्यवसाय की उन्नति का अत्यधिक ध्यान रहता था, जिसका एक बहुत छोटा-सी प्रमाण दलालों की नियुक्ति है। गरीबों की मदद के लिए राजधानी के बाहर दो विशाल भवन ‘खैरपुरा' और 'धर्मपुरा के नाम से बनवाये गये, जिनमें से एक मुसलमानों के लिए था, दूसरा हिन्दुओं के लिए है इनमें हर समय हर आदमी को तैयार खाना मिलता था। इन मकानों में जब जोगी बहुत ज्यादा जमा होने लगे जिससे दूसरों को तकलीफ़ होने लगी, तो उनके लिए एक अलग मकान जोगी पुरा' के नाम से बनवाया गया।

राज्य-प्रबन्ध की उत्तमता इन्हीं दो-चार बातों पर अवलंबित होती है---वैयक्तिक स्वाधीनता, शान्ति और व्यवस्था, करों का नरम होना और बँधी दर से लिया जाना, रास्तों का अच्छी हालत में रहना आदि। और इस दृष्टि से अकबर के राज्य-काल पर विचार किया जाये तो वह किसी से पीछे न दिखाई दे। वैयक्तिक स्वाधीनता की तो यह स्थिति थी कि हर आदमी को अख्तियार था कि जो धर्मं चाहे स्वीकार करे। इस विषय में यहाँ तक व्यवस्था थी कि कोई हिन्दू बालक बचपन में मुसलमान हो जाय, बालिरा होने पर अपने पैतृक धर्म को पुनः गृहण कर सकता था। और कोई हिन्दू स्त्री किसी मुसलमान के घर में पाई जाय, तो अपने वारिसों के पास पहुँचाई जाय। आज के समय में पदरी लोग व्यक्ति-स्वातन्त्र्य की आड़ में विभिन्न जातियों को अनाथ बच्चों के साथ जो बर्ताव किया करते हैं या कहीं जनाना मिशनों के जरिये अपढ़ स्त्रियों के मन में अपने पैतृक धर्म के प्रति विरक्ति उत्पन्न करके जिस तरह घर बिगाड़ने का कारण हुआ करते हैं, उसके वर्णन की आवश्यकता नहीं। शान्ति-रक्षा के लिए भी अकबर ने बहुत ही बुद्धिमत्तापूर्ण आदेश निकाले थे, जैसे कि जरायम पेशा लोगों और अन्य जातिवालों की निगरानी के लिए हर महल्ला मैं एक-एक आदमी को, जो ‘मीर महल्ला' कहलाता था, जिम्मेदार बना देते, और कोतवाल व चौकीदारों के कर्तव्यों की जिम्मेदारियों की