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अकबर महान
 


सूची से प्रकट होता है, लोगों को फ़रियाद सुनने और उनके आपस के झगड़े निबटाने के लिए क़ाजी और मीर अदल नियुक्त थे, जिनमें क़ाजी का काम जाँच करना और मीर अदल का निर्णय सुनाना था। सत्र की निगरानी के लिए एक उच्च अधिकारी सदरजहाँ नाम से नियुक्त था। कर्तव्यों के इस विभाग से प्रकट होता है कि न्याय-दान का काम कैसी सावधानी से होता होगा। और खूबी यह है कि अदने से अदना आदमी बिना किसी खर्च के इस व्यवस्था से लाभ उठा सकता था। क्योंकि उस जमाने में न कोई स्टाम्प क़ानून था, और न वकील- मण्डली। कर-व्यवस्था की ओर आरंभ से ही अकबर का जो ध्यान था, उसकी चर्चा पहले आनुषांशिक रूप से हो चुकी है। उसने बड़ी ही दृढ़ता और बुद्धिमत्ता के साथ उन सब करों को एकबारगी उठा दिया जो राष्ट्र की उन्नति में बाधक थे या लोगों का दिल दुखाते थे। और जो कर बहाल रखे उनके संबन्ध में भी सीधे और साफ़ कायदे बना दिये। मालगुजारी के बन्दोबस्त के मुख्य सिद्धान्त यह हैं कि जोती-बोयी जानेवाली भूमि की रक़व़ा निश्चित हो। लगान कुछ साल की औसत पैदावार के विचार से ज़मीन के उत्तम-मध्यम होने का ध्यान रखकर ऐसी मध्यम दर से नियत किया जाय जिसमें अच्छी बुरी दोनों तरह की फसलों के लिए ठीक पड़े, और किसान को अपनी जोत की जमीन के अतिरिक्त परती जमीन को भी लेने की प्रवृत्ति हो, यह सिद्धान्ततः तो सरकार के लाभ की दृष्टि से आवश्यक है, पर किसान (यल्मी अधिकार) का लाभ इसमें हैं कि ज़मीन पर उसको क़ब्ज़ा रखने का हक़ हासिल हो, जिसमें वह मन लगाकर उसको जोते-बोये और उसकी उर्वरता बढ़ाने की भी यत्न करे, लगान की दर निश्चित और ज्ञात हो जिसमें अहलकारों को उसे जयादा सताने को मौकों ने मिले, और इतनी नरम हो कि हर साल उसे कुछ बचत होती रहे, जिसमें फसले मारी जाने पर आसानी से गुजर कर सके। यही वह सिद्धान्त थे, जिन पर टोडरमल और मुजफ्फ़र खाँ का मालगुजारी का बन्दोबस्त आश्रित था और वही आज तक मालगुजारी के कारिंदों