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अकबर महान
 


बड़े विभागों का संक्षिप्त परिचय दिया है जिनका प्रभाव जन-साधारण के सुख-दुःख पर पड़ता। इनके सिवा और भी जितने महकमे थे, जैसे टकसाल, खजाना, ऊँटखाना; हाथीखाना आदि, उनके नियम भी बड़ी सूक्ष्मदर्शिता के साथ बनाये गये थे। सारांश, राज्य की कोई भी विभाग ऐसा न था, जिसको अकबर की बुद्धिमानी से लाभ न पहुँचा हो।

अब राज्य-प्रबंध से आगे बढ़कर अकबर के निजी जीवन पर दृष्टि डाली जाय तो वह बड़ा ही प्यार करने योग्य व्यक्ति था। विनोदशीलता इतनी थी कि कैसा ही ‘शुष्कं काष्ठ' व्यक्ति उसकी गोष्ठी में संभलते हो, मजाल नहीं हास्य रस में शराबोर न हो जाय। सौजन्य और दया का तो पुतला था। जिस आदमी की उस तक पहुँच हो जाती, उम्र भर के लिए अर्थ-चिन्ता से मुक्त हो जाता। और जिस शत्रु ने उसके सामने सिर झुका दिया, उसके लिए उसकी क्षमा और अनुग्रह का स्रोत उमड़ अठा और उसको अपने खास दरबारियों में दाखिल किया। भोजन एक ही समय करती और विषय वासना के भी वश में न था। यद्यपि पढ़ा-लिखा न था, पर अपना समय प्रायः शास्त्र-चर्चा तथा सब प्रकार के ग्रंथो को पढ़वाकर सुनने में लगाया करता था। और विद्वानों का चाहे वे किसी भी धर्म या जाति के हों, बड़ा आदर करता था। उसमे आदमियो की पहचान जबर्दस्त थी और चुनाव की यह खूबी थी कि जो आदमी जिस कार्य के लिए विशेष योग्य होता था, वही उसके सिपुर्द किया जाता था। यही कारण था कि उसकी योजनाएँ कभी विफल न होती थीं। इसी योग्यता की बदौलत वह अमूल्य रत्न उसकी दरबार की शोभा बढ़ा रहे थे जो विक्रमादित्य के नवरत्न को भी मात करते थे। शिकार का बेहद शौक़ था, और हाथियों को तो आशिक़ ही था। संगती-शास्त्र के तत्वों से भी अपरिचित न था। इमारतें बनवाने की ओर भी बहुत ध्यान था और बहुत से शानदार क़िले और भव्य प्रसाद आज तक उसकी सुरुचि और राजोचित उत्कांक्षा के साक्षी स्वरूप विद्यमान हैं। ईश्वर