पृष्ठ:कलम, तलवार और त्याग.pdf/६६

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स्वामी विवेकानन्द

कृष्ण भगवान ने गीता में कहा है कि जब-जब धर्म का हाृस और पाप की प्रबलता होती है तब-तब मैं मानव-जाति के कल्याण के लिए अवतार लिया करता हूँ। इस नाशवान् जगत् में सर्वत्र सामान्यतः और भारतवर्ष में विशेषतः जब कभी पाप की वृद्धि या और किसी कारण (समाज के) संस्कार या नव-निर्माण की आवश्यकता हुई तो ऐसे सच्चे सुधारक और प्रथप्रदर्शक प्रकट हुए हैं, जिनके आत्मबल ने सामयिक परिस्थिति पर विजय प्राप्त की। पुरातन काल में जब पाप अनाचार प्रबल हो उठे तो कृण भगवान् आये और अनीति-अत्याचार की आग बुझाई। इसके बहुत दिन बाद जब क्रूरता, विलासिता और स्वार्थपरता का फिर दौरदौरा हुआ ता बुद्ध भगवान् ने जन्म लिया और उनके उपदेशों ने धर्मभाव की ऐसी धारा बहा दी जिसने कई सौ साल तक जड़वाद को सिर न उठाने दिया। पर जब काल-प्रवाह ने इस उच्च आध्यात्मिक शिक्षा की नींव का भी खोखली कर दिया और उसकी आड़ में दंभ-दुराचार ने फिर जोर पकड़ा तो शंकर स्वामी ने अवतार लिया और अपनी वाग्मिता तथा योगबल से धर्म के परदे में होनेवाली सारी बुराइयों की जड़ उखाड़ दी। अनन्तर कबीर साहब और श्री चैतन्यमहाप्रभु प्रकट हुए और अपनी आत्मसाधना का सिक्का लोगों के दिलों पर जमा गये।

ईसा की पिछली शताब्दी के प्रारंभ में जड़वाद ने फिर सिर उठाया, और इस बार उसका आक्रमण ऐसा प्रबल था, अस्त्र ऐसे अमोघ और सहायक, ऐसे सबल थे कि भारत के आत्मवाद को उसके