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स्वामी विवेकानन्द
 


बहुत बिगड़ रहा था, फिर भी वह स्वयं घर-घर धूमते और पीड़ितों को आक्ष्वासन तथा आवश्यक सहायता देते-दिलाते, प्लेग-पीड़ितों की सहायता करना जिनसे डाक्टर लोग भी भागते थे, कुछ इन्ही देश- भक्तो का काम था।

उधर इंग्लैण्ड और अमरीका में भी वह पौधा बढ़ रहा था, जिसका बीज स्वामीजी ने बोया था। दो संन्यासी अमरीका में और एक इंग्लैण्ड में वेदान्त-प्रचार में लगे हुए थे, और प्रेमियों की संख्या दिन-दिन बढ़ती जाती थी।

स्वामीजी का स्वास्थ्य जब बहुत अधिक बिगड़ गया तो अपने लाचार हो इंग्लैण्ड की दूसरी यात्रा की और वहाँ कुछ दिन ठहरकर अमरीका चले गये। वहाँ आपको बड़े उत्साह से स्वागत हुआ। दो बरस पहले जिन लोगों ने आपके श्रीमुख से वेदान्त-दर्शन पर जोरदार वक्तृताएँ सुनी थीं, वह अब पक्के वेदान्ती हो गये थे। स्वामीजी के दर्शन से उनके हर्ष की सीमा न रही। यहाँ का जलवायु स्वामीजी के लिए लाभजनक सिद्ध हुआ और कठिन श्रम करते रहने पर भी कुछ दिन में आप फिर स्वस्थ हो गये। धीरे-धीरे हिन्दू-दर्शन के प्रेमियों की संख्या इतनी बढ़ गई कि स्वामीजी दिन-रात श्रम करके भी उनकी पिपासा तृप्त न कर सकते थे। अमरीका जैसे व्यापारी देश में एक हिन्दू संन्यासी का भाषण सुनने के लिए दो दो हजार आदमियों की जमा हो जाना कोई साधारण बात नहीं है। अकेले सानफ्रांसिस्को नगर में अपने हिन्दू दर्शन पर पूरे पचास व्याख्यान दिये। श्रोताओं की संख्या दिन-दिन बढ़ती गई और अध्यात्म-तत्व के प्रेमियों की तृप्ति केवल दार्शनिक व्याख्यान सुनने से न होती थी। साघन और योगाभ्यास की आकांक्षा भी इनके हृदयों में जगी। स्वामीजी ने उनकी सहायता से सानफ्रांसिस्को में वेदान्त सोसायटी' और शांति आश्रम स्थापित किया और दोनों पौधे आज तक हरे-भरे हैं। शांतिआश्रम नगर के कोलाहल से दूर एक परम रमणीय स्थान पर स्थित