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कलम, तलवार और त्याग
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गृहस्थ-जीवन की अत्यधिक प्रवृत्ति को वह घृणा की दृष्टि से देखते थे। अतः रामकृष्ण मिशन की ओर से जो विद्यालय स्थापित किये गये, उनमें पढ़नेवालो के मा-बाप को यह शर्त भी स्वीकार करनी पड़ती है कि बेटे का ब्याह १८ साल के पहले न करेंगे। वह ब्रह्मचर्य के जबरदस्त समर्थक थे और भारतवर्ष की वर्तमान भीरुता और पतन को ब्रह्मचर्य-नाश का ही परिणाम समझते थे। आज-कल के हिन्दुओं के बारे में अक्सर वह तिरस्कार के स्वर में कहा करते थे कि यहाँ भिखमंगा भी यह आकांक्षा रखता है कि ब्याह कर लें और देश में दस-बारह गुलाम और पैदा कर दें।

वर्तमान शिक्षा-प्रणाली के आप कट्टर विरोधी थे। आपका मत था कि शिक्षा उस जानकारी का नाम नहीं है जो हमारे दिमाग में ठुँस दी जाती है; किन्तु शिक्षा का प्रधान उद्देश्य मनुष्य के चरित्र का उत्कर्ष, आचरण को सुधार और पुरुषार्थ तथा मनोबल की विकास है...'अतः हमारी लक्ष्य यह होना चाहिए कि हमारी सब प्रकार की लौकिक शिक्षा का प्रबन्ध हमारे हाथ में हो, और उसका संचालन यथासंभव हमारी प्राचीन रीति-नीति और प्राचीन प्रणाली पर किया जाय।'

स्वामीजी की शिक्षा-योजना बहुत विस्तृत थी। एक हिन्दू विश्वविद्यालय स्थापित करने का भी आपका विचार था, पर अनेक बाधाओं के कारण आप उसे कार्यान्वित न कर सके। हाँ, उसका सूत्रपात अवश्य कर गये।

धर्मगत रागद्वेष का भी आपके स्वभाव में कहीं लेश भी न था। दुसरे धर्मों की निन्दा और अपमान को बहुत अनुचित मानते थे, ईसाई धर्म, इसलाम, बौद्ध धर्म सबको समान दृध्रि से देखते थे। एक भाषण में हूजरत ईसा को ईश्वर का अवतार माना था। अपने देश वासियों को सदा इस बात की याद दिलाते रहते थे कि आत्म-विश्वास ही महत्त्व का मूलमन्त्र है। हमें अपने ऊपर बिल्कुल भरोसा नहीं। अपने को छोटा और नीचा समझते हैं, इसी कारण दीन-हीन बने हुए