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कलम, तलवार और त्याग
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सकोगे, जो केवल वीर-पुरुषों का अधिकार है ? हे भारतनिवासी भाइयो! अच्छी तरह याद रखो कि सीता, सावित्री और दमयन्ती तुम्हारी जाति की देवियाँ हैं। हे वीर पुरुषो! मर्द बनो और ललकारकर कहो, मैं भारतीय हूँ। मैं भारत का रहनेवाली हैं। हर एक भारतवासी चाहे वह कोई भी हो, मेरा भाई है। अपढ़ भारतीय, निर्धन भारतीय, ऊँची जाति का भारतीय नीची जाति का भारतीय सब मेरे भाई हैं। भारतीय मेरा भाई है। भारत मेरा जीवन, मेरा प्राण है। भारत के देवता मेरा भरण-पोषण करते हैं। भारत मेरे बचपन का हिंडोला, मेरे यौवन का विलास-भवन और बुढ़ापे का वैकुण्ठ है। हे शंकर! हे धरती माता! मुझे मर्द बना। मेरी दुर्बलता दूर कर, और मेरी दुर्बलता का नाश कर।'

स्वामीजी के उपदेशों का सार यह है कि हम स्वजाति और स्वदेश के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करें, आत्मबल प्राप्त करें, बलवान् और वीर बनें। नीची जातियों को संभारे और उन्हें अपना भाई समझें। जब तक ९० प्रतिशत भारतवासी अपने को दीन-हीन समझते रहेगे, भारत में एक और मेल का होना सर्वथा असंभव है। हम धर्म में आस्था रखें, पर संन्यासी, विरागी न बनें। हाँ, हम अपने एका के लिए सब प्रकार के त्याग करने को तैयार है। हम एक पैसा कमायें, पर उसे अपने सुख-विलास में खर्च न करें, किन्तु राष्ट्रहित में लगा दें। हिन्दू तत्त्वज्ञान के कर्मसंबन्धी अंग का अनुसरण करें, सम, दम और तप, त्याग उन लोगों के लिए छोड़ दें भिन्हें भगवान ने इस उच्च पद पर पहुँचने की क्षमता प्रदान की है। स्वामीजी की शिक्षा का आधार प्रेम और शक्ति है। निर्भकतो उसका प्राण हैं और आत्मविश्वास इसका धर्म है। उनकी शिक्षा में दुर्बलता और अनुनय-विनय के लिए तनिक भी स्थान नहीं था। उनका वेदान्स मनुष्य को सांसारिक दुःख-क्लेश से बचाने, जीवन-संग्राम में वीर की भाँति जुटने और मानसिक-आध्यात्मिक आकांक्षाओं की पूर्ति की समान रुप से शिक्षा देता है।