पृष्ठ:कलम, तलवार और त्याग.pdf/९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
राजा टोडरमल

यों तो अकबर का दरबार विद्या और कला, नीतिज्ञता और कार्य कुशलता का भंडार था; पर इतिहास के पन्नो पर टोडरमल का नाम जिस आब-ताब के साथ चमका, राज्य-प्रबन्ध और शासन-नीति में जो स्मरणीय कार्य उसके नाम से संयुक्त है, वह उसके समकालीनो में से किसी को प्राप्त नहीं। खानखाना, खानज़माँ और खान आज़म की प्रलयकारी तलवारें थीं, जिन्होने अकबरी दुनिया में धूम मचा रखी थी, पर वह बिजलियाँ थीं कि अचानक कौघी और फिर आँखों से ओझल हो गईं। अबुल फज़ल और फैजी के अनुसंधान और गहरी खोजें थीं कि जिज्ञासु जन चाहें तो आज भी उनसे अपनी ज्ञानपरिधि का विस्तार कर सकते है। परन्तु टोडरमल की यादगार, वह शासन- व्यवस्थाएँ और विधान हैं जो सभ्यता और संस्कृति की इतनी प्रगति के बाद भी आज तक गौरव की दृष्टि से देखे और श्रद्धा के साथ बरते जाते हैं। न काल की प्रगति उन्हे छूने का साहस कर सकी और न शासन-प्रणाली के अदल-बदल।

टोडरमल जाति का खत्री और गोत्र का टंडन था। उसके जन्म स्थान के विषय में मतभेद हैं, पर एशियाटिक सोसायटी की नई खोजों ने निश्चित कर दिया है कि अवध प्रदेश के लाहरपुर ग्राम को उसकी जन्म-भूमि होने का गौरव प्राप्त हैं। मा-बाप निर्धनता के कारण कष्ट से दिन बिता रहे थे। उस पर यह विपत्ति और पड़ी कि अभी टोडरमल के हाथ पाँव सम्हलने न पाये थे कि बाप का साया भी सिर से उठ गया और विधवा माता ने न मालूम किन कठिनाइयों से इस होनहार बच्चे को पला। पर भगवान का लीला को देखिए कि यही अनाथ और