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कलम, तलवार और त्याग
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असहाय बालक सम्राट अकबर को प्रधान मंत्री हुआ जिसकी लेखनी की सत्ता सारे भारतवर्ष में व्याप्त थी। दुनिया में बहुत कम ऐसी माताएँ होंगी, जिनके लड़के ऐसे सपूत होगे और कम ही किसी सन्त-महात्मा का आशीवाद ईश्वर के दरबार में इस प्रकार स्वीकृत हुआ होगा।

उस जमाने में जब कि शिक्षा ऊँची श्रेणीवालौं तक ही सीमित थी और आज की शिक्षा-संबन्धी सुविधाओं का नाम भी न था, इस निर्धन बालक की पढ़ाई-लिखाई क्या हो सकती थी। हाँ, वह स्वभाअतः तीक्ष्णबुद्धि, परिश्रमी और ढंग से काम करनेवाला था और यह अभ्यास वय के साथ-साथ दृढ़ होते गये। अभी वयस्क भी न होने पाया था कि जीविकार्जन की आवश्यकता ने घर से बाहर निकाला। शेरशाह सूरी उन दिनों भारत का भाग्य-विधाता हो रहा था और उसका मंत्री मुजफ्फर खाँ जमीन को बन्दोबस्त करने में व्यस्त था। इसकी सरकार में साधारण क्लर्क का काम करने लगा। पर नैसर्गिक प्रतिभा और सहज गुण कब छिपे रहते हैं! अपनी कार्यकुशलता और श्रम शीलता की बदौलत आगे-आगे रहने लगा; और दफ्तर के अनेक विभाग उसके अधीन हो गये । चूँकि आरंभ से ही उसको पुस्तका- ध्ययन और नई-नई बातों के जानने का शौक था, बहुत जल्द दफ्तर के काम-काज और सारी बातों का पूरी जानकार हो गया। इस बीच जमाने ने करवट बदली। और सूरी-वंश का ह्रास हुआ और हुमायूँ का भाग्य जागा। पर वह भी कुछ दिनों में स्वर्ग को सिधारा और अकबर ने राजमुकुट सिर पर धरा। वह आदमी का परखनेवाला था। एक ही निगाह मैं ताड़ गया कि यह नौजवान मुंशी एक दिन जरूर नाम करेगा। उसे अपनी सरकार में ले लिया और दरबार में रहने का हुक्म दिया है।

पर अकबर का दरबार वह उद्धान न था जहाँ कोई निरा सिपाही या निरा मुंशी यश और सम्मान के फूल चुन सकता। टोडरमल अब तक कलम के जौहर दिखाता रहा। पर सन् १५६५ ई० में आवश्यकता