पृष्ठ:कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ.djvu/७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६१
कला और सौन्दर्य

है, या उसका रूप क्या है। यह तो दूसरे व्यक्ति जो चित्रकार के चित्रों को पसन्द करते हैं अपनी प्रसन्नता व्यक्त करने के लिए बोल उठते हैं, “सुन्दर”, “अति सुन्दर” इत्यादि। कलाकार कभी यह नहीं सोचता कि उसने चित्र में सुन्दरता भरी है। चित्रकार तो परिश्रम करके स्नेह के साथ कुछ अंकित करता है और व्यक्ति जिस काम में परिश्रम देता है और स्नेह करता है, वह उसे भाता है। अपने हाथ की बनायी रोटी सबको बहुत मीठी लगती है। जो कार्य व्यक्ति परिश्रम तथा स्नेह से करता है उसमें अक्सर दूसरों को भी आनन्द मिलता है। इस प्रकार परिश्रम और स्नेह को हम सुन्दरता कह सकते हैं। वाग का माली जब परिश्रम तथा स्नेह से अपने बगीचे के पौधों को सींचता है और वे खिल उठते हैं, तो उसे उनमें सुन्दरता दृष्टिगोचर होती है। बालक परिश्रम तथा स्नेह के साथ एक भोंडा चित्र बनाकर भी बहुत प्रसन्न होता है और उसमें उसे सुन्दरता दृष्टिगोचर होती है। इस प्रकार यदि हम किसी भी वस्तु को स्नेह से देखें तो उसमें हमें मुन्दरता दृष्टिगोचर होती है। जब हम किमी चित्र का आनन्द लेना चाहें तो हमें उममें सुन्दरता नहीं खोजनी है बल्कि उसे सर्व प्रथम अपना स्नेह देना है और ऐसा करते ही उसमें हमें सुन्दरता दिखाई पड़ेगी जो आनन्ददायक होगी। जिस वस्तु को सारा संसार सुन्दर कहता है उसमें भी हमें सुन्दरता नहीं मिल सकती, यदि हमने उसे अपना स्नेह नहीं दिया है।

स्नेह न होने के कारण कौरवों और पाण्डवों में महाभारत हुआ। भाई-भाई की हत्या करने को उद्यत हुआ। स्नेह न होने के कारण तिष्यरक्षिता ने कुणाल के नेत्र निकलवा लिये। स्नेह न होने के कारण औरंगजेब ने अपने राज्य में कलाओं को बन्द करवा दिया, भारतवर्ष के कलाकारों द्वारा निर्मित अद्भुत मूर्तियों तथा मन्दिरों को तुड़वा डाला, स्नेह की कमी के कारण कला की हत्या की। यही स्नेह कुरूपता को भी सुन्दर बना लेता है अपने बल से। लैला कुरूप थी, पर स्नेह के कारण मजनू ने उसे अति सुन्दर समझा। स्नेह में बड़ी शक्ति है। यही स्नेह यदि हम दूसरों को दें तो वे हमें सुन्दरता बदले में देते हैं। सुन्दरता पाना चाहते हैं तो हमें अपना स्नेह देना पड़ेगा।

हम अपना स्नेह संसार की सब वस्तुओं को नहीं दे पाते, यही कारण है कि संसार की कुछ वस्तुएँ हमें सुन्दर लगती हैं और कुछ असुन्दर। परन्तु सृष्टि में कोई वस्तु असुन्दर या सुन्दर नहीं। सभी भिन्न-भिन्न वस्तुएँ हैं। सब हमारा स्नेह चाहती है। स्नेह पाकर वे हमें प्रसन्नता देती हैं, सन्तुष्टि देती हैं, सुख तथा सुन्दरता हमें मिलती है। किसी ने कहा है――“मनुष्य कुछ देकर ही कुछ पाता है।” यही बात सुन्दरता पाने के लिए भी सत्य है। कभी-कभी हम चेष्टा करने पर भी किसी-किसी वस्तु को स्नेह नहीं दे पाते और यही कारण है कि उसमें हमें सुन्दरता कभी नहीं दिखाई पड़ती। परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं कि हम