पृष्ठ:कवितावली.pdf/१०

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जायो कुल मंगन, बधावनी बजायो सुनि, भयो परिताप पाप जननी जनक को। बारे ते ललात बिललात द्वार द्वार हीन, जानत है। चारि फल चारि ही चनक को ॥ साहिय सुजान जिन स्वान हूँ को पच्छ किया, रामबोला नाम, हैं। गुलाम राम सहकी ॥ ॥ धूत कही, अवधूत कही, रजपूत कही, जोलहा कहै। फोऊ । काहू की बेटी सो बेटा न व्याहव, काहू की जाति विगार न खाऊ ॥॥ मौगिक खैबो मसीत को साइनो मेरे ज्ञाति पानि, न चहैं। कार की ज्ञाति पति, ** अति ही अयाने उपखाना नहि बूझै लेग, साहही को गात गात होत है गुलाम को ॥ १०॥ बाल्यावस्था उपर्युक्त अवतरणों के पढ़ने से स्पष्ट विदित होता है कि तुलसीदास बालकपन से ही अति दरिद्र थे। उनकी सम्पदा कथरी ( फटा लिहाफ और बिछौना ) और करवा (मिट्टो का लोटा) ही भर थी। विधि ने भी कोई और सम्पत्ति-जैसे बिरवा (वृक्ष) इत्यादि-उनके भाल में न लिखी थी। यहाँ तक कि 'बरवा' (बाल ) तक भी वे अपने न समझते थे। माता-पिता ने उन्हें उत्पन्न होते ही छोड़ दिया था। वे रोटी के टुकड़े द्वार-द्वार माँगते फिरते थे। उसी समय राम का नाम उन्होंने सुना (कदा- चित् राम-मन्त्र लिया अथवा किसी राम-नामी साधु का नाम सुना), जिसके द्वारा स्वार्थ और परमार्थ होने की प्राप्ति सनको हो गई। 'जन्मवे ही छोड़ जाने से दो प्रकार के अर्थ लगाये जाते हैं:- (१) कुछ लोग कहते हैं कि तुलसीदास अभुक्त मूल में उत्पन्न हुए थे, अतएष मुहूर्व-चिन्तामणि के निम्नलिखित वचन के अनुसार तुलसीदास के माता-पिता ने उन्हें फेंक दिया था-