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लङ्काकाण्ड़


चले गये। विभीषण भाई जा मिला, हे प्रभु! आ पड़ने पर वैर निकालेगा, अथवा सायर जो समुद्र है उसके किनारे पर प्रभु आ गये हैं।

[११३]

पालिबे को कपि-भालु-चमू जमकाल करालहु को पहरी है।
लंक से बंक महागढ़ दुर्गम ढाहिबे दाहिबे को कहरी है॥
तीतर-तोम तमीचर-सेन समीर को सूनु बड़ो बहरी है।
नाथ भलो रघुनाथ मिले, रजनीचर-सेन हिये हहरी है॥

अर्थ—पालने को बन्दर और भालुओं की सेना है जो यम और कराल काल के भी कोप को हरनेवाली है, अथवा बन्दर और भालु सेना को पालने के लिए हनुमान पहरी (पहरेवाले) की तरह है। लङ्का से बड़े दुर्ग को गिरा देने के लिए और जला देने को कहर (महामारी) है। राक्षसों की सेना तीतरों के समूह के समान है और हनुमान बहरी (शिकारी) है। हे नाथ! भला यह है कि राम से मिलो। राक्षसों की सेना हृदय में काँप रही है।

शब्दार्थ—तोम= समूह। तमीचर= राक्षस। समीर को सूनु= हनुमान्। बहरी= शिकारी पक्षी विशेष। हहरी घबड़ा रही है।

घनाक्षरी
[११४]


रोष्यो रन रावन, बोलाए बीर बानइत,
जानत जे रीति सब संजुग समाज की।
चली चतुरंग चमू, चपरि हने निसान,
सेना सराहन जोग रातिचर-राज की॥
तुलसी बिलोकि कपि भालु किलकत,
ललकत लखि ज्यों कँगाल पातरी सुनाज की।
राम रुख निरखि हरषे हिय हनुमान,
मानो खेलवार खोली सीस ताज बाज की॥*


*हरिहरप्रसाद कृत कवितावली में इस प्रकार है—
राम रुख निरखि हरष्यो हिय हनुमान,
'मानो खेलवार खोल सीस ताज बाज की॥