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लङ्काकाण्ड

लाँबी लम लसत लपेटि पटकत भट,
देखौ देखौ लखन! लरनि हनुमान की॥

अर्थ―हाथियों से हाथी और घोड़ों से घोड़े, रथों से रथ लड़ाकर नष्ट किये, बलवान् (हनुमान्) की ऐसी विदरन (नाश करने की क्रिया) है। तेज चपेटों की चोट से और लातों के प्रहार से घबड़ाई हुई राक्षसों की फ़ौजें भागने लगीं। रामजी बारम्बार अपने सेवक की सराहना करते हैं। तुलसीदास अपने सुजान साहब (रामचन्द्रजी) की रीति की सराहना करते हैं। लम्बी पूँछ से लपेट-लपेट कर वीरों को पटक रहा है, हे लक्ष्मण! हनुमान की लड़ाई को देखा।

[ १२५ ]

दबकि दबारे एक बारिधि में बोरे, एक
मगन मही में, एक गगन उड़ात हैं।
पकरि पछारे कर, चरन उखारे एक,
चीरि फारि डारे, एक मींजि मारे लात हैं॥
तुलसी लखत राम, रावन बिबुध, विधि,
चक्रपानि, चंडोपति, चंडिका सिहात हैं।
बड़े बड़े बानइत, बीर बलवान बड़े,
जातुधान जूथप निपाते बातजात हैं॥

अर्थ―झपटकर किसी को दाब देता है, किसी को समुद्र में डुबो देता है, एक पृथ्वी ही पर पड़ा है, दूसरा आसमान में उड़ रहा है। किसी को हाथ पकड़कर दे मारता है। किसी का पैर उखाड़ डालता है। किसी का कपड़ा फाड़ डालता है अथवा किसी को चीड़ फाड़ डालता है। किसी के कसकर लात मारता है वा लात से मींज डालता है। तुलसीदास कहते हैं कि (हनुमान् की) लक्ष्मण, राम, रावण, देवता, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, चण्डी सबके सब सराहना करते हैं। बड़े-बड़े बाँके बानेवाले बलवान् वीर राक्षसों के सेनापतियों को हनुमान् ने मार डाला

[ १२६ ]

प्रबल प्रचंड बरिवंड बाहुदंड बीर,
धाये जातुधान हनुमान लियो घेरि कें