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लङ्काकाण्ड

रहा है। अतिकाय का शरीर सूख गया। कुम्भकर्ण भी आकर आह सी करके रह गया। गजराज को देख जैसे शेर गरजकर दौड़ता है वैसे ही कुम्भकर्ण को देखकर रामचन्द्र का साहसी वीर हनुमान् दौड़ा।

झूलना

[ १२८ ]

मत्तभट-मुकुट-दसकंध-साहस-सइल-
सृंग-बिद्दरनि जनु बज्रटाँकी।
दसन धरि धरनि चिक्करत दिग्गज, कमठ
सेष संकुचित, संकित पिनाकी॥
चलित महि मेरु, उच्छलित सायर*[१] सकल,
बिकल बिधि बधिर दिसि विदिसि झाँकी।
रजनिचर-घरनि घर गर्भ-अर्भक स्त्रवत
सुनत हनुमान की हाँक बाँकी॥

अर्थ―मस्त योधाओं के मुकुट, रावण, के साहस रूपो पहाड़ की चोटी को तोड़ने के लिए हनुमान् ऐसे हैं जैसे वज्र की टाँकी (कुल्हाड़ी)। उनकी ललकार सुनकर पृथ्वी को दाँतों से दबाकर दिग्गज चिंघाड़ने लगे, कमठ और शेष सकुच गये और महादेव भी शंका करने लगे। पृथ्वी के मेरु हिलने लगे, सब समुद्र उछलने लगे। ब्रह्मा बहिरे होकर चारों ओर झाँकने लगे। राक्षसों के घर औरतों के गर्भपात हो गये जैसे ही बाँके हनुमान् की हाँक (आवाज़) अथवा उनकी बाँकी ललकार उन्होंने सुनी।

[ १२९ ]

कौन की हाँक पर चौंक चंडीस बिधि,
चंडकर थकित फिरि तुरँग†[२] हाँके।
कौन के तेज बलसीम भट भीम से,
भीमता निरखि कर नयन ढाँके॥


  1. * पाठान्तर―सागर।
  2. † पाठान्तर―तुरग।