पृष्ठ:कवितावली.pdf/११

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“जात शिशु तत्र परित्यजेता मुखं पिताश्याष्ट समा २ पश्येत्।। मुहूर्त- चिन्तामणि तुलसीदास का इस-कालीन अन्य कहा जाता है। यही क्यों, इस कथन के अनुमोदन में बिलानि का "जननि जनक तज्यौ, जनमि' भी पेशा किया जाता है। 4.२) कुछ लोगों का कथन है कि तुलसीदास के माता-पिता उनकी बाल्यावस्था ही में मर गये थे। अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि इन दोनों कथनों में से कौन अधिक माननीय है ? यह कि अभुक्त मृल में उत्पन्न होने के कारण तुलसीदास के माता-पिता ने उन्हें छोड़ दिया था अथवा यह कि तुलसीदास की बाल्यावस्था ही में उनके माता-पिता का स्वर्ग- वास हो गया था। यदि स्वर्गवास की बात सही है तो प्रश्न यह होता है कि यह बात तुलसीदास ने स्पष्ट क्यों नहीं लिखी ? "मातु पिता जग जाय तज्यो" ही लिखकर क्यों मौनावलम्बन किया १ तुलसीदास ने कलि-वर्णन करते समय अनेक बुरी प्रथाओं का वर्णन किया है। सभी वर्णों और आश्रमों को अनेक स्थानों पर फटकारा है । गोरख- नाथ पर कठिन भाक्षेप किया है। बाहुपीड़ा का विस्तृत वर्णन किया है। अपने कैद होने पर छन्द रचे हैं। महामारी का भी वर्णन किया है। यदि अभुक्त मूल वाली बात सच्ची है तो फिर क्या कारण है कि ऐसी बुरी प्रथा के प्रतिकूल या अनु- कूल उन्होंने कुछ भी नहीं कक्षा, जिसकी बदौलत वे "द्वार-द्वार बिललात फिरे । इस विषय में ध्यान देने योग्य एक बात और भी है। मुहूर्तचिन्तामणि से उद्धृत श्लोक में कंवल पिता ही से तजे जाने की व्यवस्था है-'मुख पिताऽस्याष्ट समा न पश्येत्'-, क्योंकि यही 'पिता' 'त्यजेतू' क्रिया का कर्ता है। परन्तु तुलसीदास तो माता-पिता दोनों ही से अपना छोड़ा जाना बतलाते हैं; सो क्यों ? यदि यह मानें कि उनके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया था, तो उनसे 'तजा जाना' उन्होंने क्यों लिखा ? उनके स्वर्गवास का पल्लेख करना तो उचित और स्वाभाविक होता। अतः यही कहना पड़ता है कि कवितावली से, उपर्युक्त दोनों कथनों में से, एक का भी समर्थन नहीं होता। कुल-जाति 'जायो कुल मंगन, बधावनो वजायो सुनि, भयो परिताप पाप जननी जनक को' को यदि "मात पिता जग जाय तज्यो' के साथ रख कर पढ़े तो अर्थ निक-