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कवितावली
घनाक्षरी
[१३६]


चल्यो हनुमान सुनि जातुधान कालनेमि
पठयो सो मुनि भयो, पायो फल छलि के।
सहसा उखारो है पहार बहु जोजन को,
रखवारे मारे भारे भूरि भट दलि कै॥
बेग बल साहस सराहत कृपानिधान,
भरत की कुसल अचल ल्यायो चलि कै।
हाथ हरिनाथ के बिकाने रघुनाथ जनु*
सील सिंधु तुलसीस भलो मान्यो भलि कै॥

अर्थ—हनुमान् चला (संजीवनी लेकर) यह ख़बर सुनकर रावण ने कालनेमि को भेजा। वह (कपटी) मुनि बन गया। परन्तु उसने छल करने का फल पाया। सहज ही बहुत योजन का पहाड़ उखाड़कर सब रखवालों और योधाओं को हनुमान ने मार डाला (नष्ट कर दिया)। हनुमान् के वेग, बल और साहस की प्रशंसा श्री रामचन्द्रजी करने लगे कि भरत की कुशल को और पहाड़ को जाकर ले आये। शील के समुद्र रामजी मानो हनुमान् के हाथ बिक गये और उन्होंने भले प्रकार हनुमान् का बहुत कुछ भला माना।

[१४०]


बापु दियो कानन भो आनन सुभानन सो,
बैरि भो दसानन सो तीय को हरन भो।
बालि बलसालि दलि, पालि कपिराज को,
विभीषन नेवाजि†, सेत सागर तरन भो॥
घोर रारि हेरि त्रिपुरारि बिधि हारे हिये,
घायल लखन बोर बानर बरन भो।



*पाठान्तर—जन।
†पाठान्तर—निवाजि।