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उत्तरकाण्ड

न छोड़ेंगे परंतु चाहे जैसे पुण्यात्मा के साथ मुझे सौल देखिए नाम की बदौलत मेरा ही पल्ला भारी होगा।

[ २१४ ]

जाति के, सुजाति* के, कुजाति† के, पेटागि बस,
खाए टूँक सब के बिदित बात दुनी सो।
मानस बचन काय किए पाप सति‡ भाय,
राम को कहाय दास दगाबाज पुनी सो॥
राम नाम को प्रभाउ पाउ§, महिमा प्रताप,
तुलसी से जग मानियत महामुनी सो।
अति ही अभागो अनुरागत न रामपद,
मूढ़ एतो बड़ो अचरज देखि‖ सुनी सो॥

अर्थ―जाति, कुजाति, अच्छी जाति, सब के टुकड़े पेट की अग्नि के वश खाये, सो बात दुनिया जानती है। मन, वचन, शरीर से पाप सहज ही (अनेक) किये, फिर राम का कहाकर भी दग़ाबाज़ रहा। रामनाम का प्रभाव ऐसी महिमा और प्रताप रखता है कि जिससे तुलसी सा मनुष्य बड़ा मुनि सा गिना जाता है, ऐसा मैंने सुना है। वह बड़ा अभागा है जो राम के पद में प्रीति नहीं लगाता और इतना बड़ा मूढ़ है कि जिसके सुनने से अचरज होता है, अथवा हे मूढ़! इतना बड़ा अचरज देख सुनकर भी जो रामपद में प्रीति नहीं करता वह बड़ा अभागा है।

[ २१५ ]

जायो कुल मंगन, बधावनों बजायो सुनि,
भयो परिताप पाप जननी जनक को।



*पाठान्तर―कुजाति।
†पाठान्तर―अजाति।
‡पाठान्तर―सत्य।
§पाठान्तर―बाउ।
‖पाठान्तर―देखी।
पाठान्तर―वधायो न।