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उत्तरकाण्ड


साधनों को उन्होंने न तो देखा न उनको चित्त में लाया। मट्ठे का लालच करता हूँ जब कि रामनाम के प्रसाद से सब (खुनसें) एवं (सोधे) दूर होकर दूध की मलाई खाने को मिलती है अथवा जो छाछ का लालच करते थे वे तुलसीदास रामनाम के प्रसाद से दूध की सोंधी मलाई खाने में खुनलाते हैं (ख़फ़ा होते हैं)। राम के राज्य में राजनीति की हद सुनी जाती है, परन्तु हे राम! आपके नाम ने तो धाम की (नौका पानी पर) चलाई है, अथवा चाम (का सिक्का) चलाया है अथवा चाम (की धौंकनी, शरीर) को चलाया (सज्जीवित कर दिया) है।

[ २१७ ]


सोच संकटनि सोच संकट परत,
जर जरत, प्रभाव नाम ललित ललाम को।
बूड़ियौ तरति, बिगरीयौ सुधरति बात,
होत देखि दाहिनो सुभाव बिधि बाम को॥
भागत अभाग, अनुरागत बिराग, भाग
जागत, आलसि तुलसी हू से निकाम को।
धाई धारि फिरि कै गोहारि हितकारी होति,
आई मीचु मिटति जपत रामनाम को॥

अर्थ—शोच और सङ्कट भी शोच और सङ्कट में पड़ते हैं। जर (ज्वर अथवा जरा, बुढ़ापा) जल जाता (नष्ट हो जाता) है अथवा जर्जर (नष्ट) हो जाता है। यह प्रभाव ललित (सुन्दर) ललाम (माथेवाला) मुकुदमणि रामचन्द्र के नाम का है। डूबी हुई नाव भी तैरने लगती है और बिगड़ी हुई बात भी सुधर जाती है। रामनाम की बात होते ही देखकर क्रूर विधि (ब्रह्मा) का स्वभाव भी दाहिना हो जाता है। अभाग्य भाग जाता है, वैराग्य में भी प्रेम आ जाता है और तुलसी से बेकाम आलसी का भी भाग्य जाग जाता है। रामनाम के जपने से आई हुई मृत्यु भी लौट जाती है, धावा करने अर्थात् चढ़कर आई हुई धारि (फ़ौज) भी लौट जाती है, गोहारि हितकारी होती है।

[२१८]


आँधरो, अधम, जड़, जाजरो जरा जवन,
सूकर के सावक ढका ढकेल्यो मग में।