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उत्तरकाण्ड

अर्थ―अजामिल ले कया योग किया था और गणिका ने कब अपनी बुद्धि को प्रेम में पागा था? व्याध की सज्जनता का वर्णन कीजिए, वह तो उसके अगाध अपराधों में ही दिखाई देती है। रामचन्द्रजी दमाही के लिए दया करते हैं, जो दगा देते हैं (जो दग़ाबाज़ हैं) उनके लिए नाम ही अच्छा हित है। क्यों रूठते हो, प्रसन्न हूजिए तुलसीदास से भी वही नाता है जो अजामिल आदि से था।

[ २३६ ]

जे मद-मार-विकार भरे ते अचार-विचार समीप न जाहों।
है अभिमान तऊ मन में 'जन भाषिहै दूसरे दीनन पाहीं'?
जो कछु बात बनाइ कहौं तुलसी तुम में तुम हूँ उर माहों।
जानकी-जीवन जानत हो हम हैं तुम्हरे, तुम में, सक नाहीं॥

अर्थ―जो मद और कामदेव के विकारों से भरे हैं, आचार और विचार उनके पास भी नहीं जाले। फिर भी मन में अभिमान है क्या आपका दास दूसरे के सामने दीन बचन बोलेगा? तुलसीदास कहते हैं कि यदि तुमसे कोई बात बनाकर झूठी बात कहता हूँ तो तुलसी तो आप में है और आप तो हृदय ही में मौजूद हैं। हे रामचन्द्रजी! आप जानते हैं कि मैं तो आप ही का हूँ, आपमें कुछ सन्देह नहीं रखता हूँ, अर्थात् मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप मुझे अपनायेंगे; अथवा हम आप में हैं इसमें कुछ सन्देह नहीं है।

[ २३७ ]

दानव देव अहीस महीस महा मुनि तापस सिद्ध समाजी।
जग जाचक दानि दुतीय नहीं तुमही सबकी सब राखत बाजी॥
एते बड़े तुलसीस तऊ सबरी के दिए विनु भूख न भाजी।
राम गरीबनेवाज! भये हौं गरीबनेवाज गरीबनेवाजी॥

अर्थ―दानव, देवता, नाग, राजा, बड़े मुनि तपस्वी, सिद्ध और सामाजिक लोग संसार के भिखारी हैं। देनेवाला तुम्हारे सिवा कोई नहीं है। तुम्हीं सबकी लाज सब प्रकार से रखनेवाले हो। आप इतने बड़े हैं, हे रामचन्द्रजी, तब भी सबरी के दिये हुए फलों के बिना आपकी भूख नहीं मिटी। गरीबनिवाज रामचन्द्र! आप गरीबों पर दया करके ही ग़रीबनिवाज हुए हो।