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उत्तरकाण्ड
[२५१]


जागैं जोगी जंगम, जती जमाती ध्यान धरैं,
डरैं उर भारी लोभ मोह कोह काम के।
जागैं राजा राजकाज, सेवक समाज साज,
सोचैं सुनि समाचार बड़े बैरी बाम के॥
जागैं बुध विद्याहित पंडित चकित चित,
जागैं लोभी लालच धरनि धन धाम के।
जागैं भोगी भोगही बियोगी रोगी सोगबस,
सोवै सुख तुलसी भरोसे एक राम के॥

अर्थ—योगी जन, जंगम (शिव-उपासक), और यतियों की जमाति जो सदा ईश्वर का ध्यान करते हैं और जो लोभ, मोह, क्रोध, काम से डरते हैं सदा जागा करते हैं। राजा लोग राज-काज के लिए और उनके सेवकगण बैरी के समाचार सुनकर सोच में पड़कर जागा करते हैं। विद्या के लिए पण्डित लोग चकित चित्त होकर जागते हैं और लोभी जन धन और धरती की लालच में जागा करते हैं; भोगी भोग के लिए, वियोगी विरह में, रोगी रोग के वश जागते हैं; तुलसीदास राम के भरोसे सुख से सोता है।

छप्पै
[ २५२ ]

राम मातु पितु बंधु सुजन गुरु पूज्य परम हित।
साहेब सखा सहाय नेह नाते पुनीत चित॥
देस कोस कुल कर्म धर्म धन धाम धरनि गति।
जाति-पाँति सब भाँति लागि रामहि हमारि पति*॥
परमारथ स्वारथ सुजस सुलभ राम तेँ सकल फल।
कह तुलसिदास अब जब कबहुँ एक राम तेँ मोर भल॥


*पाठान्तर—मत्ति