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कवितावली



अर्थराम मेरे माता, पिता, बंधु, सुजन, गुरु, पूज्य और परम हितैषी हैं, मालिक सखा और सहायक हैं, उन्हीं से पवित्र चित्त का नाता है। देश, खज़ाना, कुल, कर्म, धर्म, धन, धाम, धरती, गति, जाति-पाँति सब उन्हीं की है और उन्हीं में सब तरह हमारी बुद्धि लगी है अथवा उन्हीं को हमारी लाज है। परमार्थ, स्वार्थ, यश और सब फल राम से सुलभ हैं। तुलसीदास कहता है कि अब और तब (भूतकाल ) में और जब (भविष्यत् ) में एक राम ही से मेरा भला है।

[२५३]

महाराज बलि जाउँ रामसेवक सुखदायक।
महाराज बलि जाउँ राम सुन्दर सब लायक॥
महाराज बलि जाउँ राम सब संकट-मोचन।
महाराज बलि जाउँ रामराजीव बिलोचन॥
बलि जाउँ राम करुनायतन प्रनतपाल पातकहरन।
बलि जाउँ राम कलि-भय-विकल तुलसिदास राखिय सरन॥

अर्थहे महाराज! आपकी बलि जाऊँ, हे राम, सेवक को सुख देनेवाले! हे महाराज, आपकी बलि जाऊँ, हे राम! आप सुंदर और सब लायक हैं, हे राम! हे कमल-लोचन! हे महाराज! आपकी बलैया लूँ, हे राम, संकट से छुड़ानेवाले! हे राम! आपकी बलायें लूँ , हे दया के घर! हे शरणागत के पाप को हरनेवाले! हे राम! आपकी बलैया लूँ, कलि के भय से विकल तुलसीदास को अपनी शरण रखिए।

[२५४]

जय ताड़का-सुबाहु-मथन, मारीच-मान-हर।
मुनि-मख-रच्छन-दच्छ, सिला-तारन करुनाकर॥
नृप-गन-बल-मदसहित संभु-कोदंड-विहंडन।
जय कुठार-धर-दर्प-दलन, दिनकर कुल-मंडन॥
जय जनक-नगर-आनंद-प्रद सुखसागर सुखमा भवन।
कह तुलसिदास-सुर-मुकुट-मनिजय जय जय जानकि-रवन।