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उत्तरकाण्ड

दुमाला, विशु नारा भार, उ पास कर । त्रिभुवन सुखकन सधर ।। त्रिपुरारि निलावा विमानन विष भोजन भव-भाव हान। कह तुललिहास लेखन सुलभ लिबसिब लिवसकर सरन ॥ अर्थ-भस्म को प्राङ्ग में मलनेवाले और सदा कामदेव से अलङ्ग ( =दूर) रहनेवाले अथवा भस्म को अङ्ग में लगाये कालदेव का मर्दन ( नाश ) करनेवाले, सदा प्रसङ्ग (अकेले ),हर ( महादेव), जिनके सिर पर गङ्गा है और पार्वती श्रद्धाङ्गिनी है, जिनका भूषण सुन्दर सर्प है, (जिनके गले में) मुडो की माना है और लाद में दुज का चन्द्रमा है, उमरू और कराल हाथ में है, देवतागण-रूपी नये कुमुद के लिए जो चाँद के समान हैं, जो सुख के भूल और शूल धारण करनेवाले हैं, ऐसे त्रिपुरारि, तीन लोचनवाले, नग्न रहनेवाले और विष खानेवाले तथा संसार के भय को हरनेवाले (महादेव ) हैं। तुलसीदास कहते हैं कि सेवा करनेवाले को शिवजी सुलभ हैं और शरण प्राये को शङ्कर ( कल्याण करनेवाले ) हैं। [२६२] गरल-असन दिग्बसन, व्यसन-भंजन, जनरंजन । कुंद - इंदु · कर्पूर - गौर, सच्चिदानंद घन ॥ बिकट बेष, उर सेष, सीस सुर-सरित लहज सुचि । सिर अकाम, अभिराम धाम, नित राम नाम सचि॥ कंदर्य-दर्प-दुर्गम-दमन, उमारवन गुन-भवन हर । तुलसीस त्रिलोचन, निगुन-पर, त्रिपुरमथन जय त्रिदसवर ! अर्थ-विष उनका भोजन है और दिशा ही वस्त्र है ( नग्न रहते हैं ), वे ( दुःख या काम ) को तोड़नेवाले और सेवक को पालन करनेवाले हैं, वे कुन्द से कोमल और चन्द्र के से बदनवाले हैं, कपूर के से गौरवर्ण हैं और सच्चिदानन्ध के घन ( समूह ) हैं, बुरा वेष धारण किये हैं, शेषनाग को गले में पहने हैं, गङ्गा उनके सिर पर हैं और वे स्वभाव ही से पवित्र हैं, शिव सदा काम-रहित हैं और सुन्दरता के घर हैं, सदा राम के नाम से प्रेम रखनेवाले हैं। कामदेव के मद को चूर करनेवाले हैं, पार्वती के स्वामी और सब गुणों के घर महादेवजी हैं। महादेव तीन नेत्रवाले हैं,