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उत्तरकाण्ड

ताबिनु शास के दास भो, कब मिट्यो लघुलाल जी ।। साधो कहा कारे इमारत और राधेर नहीं पति पारवती को ? अर्थ-जो चारों पदारथ ( धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) को देनेवाले महादेव हैं और जिनके सिर तीनों लोक में दीका है अर्थात् जो तीनों लोक में दानि-शिरोमणि हैं, बड़े भारी (धैर्यवान ) हैं, और अच्छे भाव के भूले हैं, जिन्होंने याद करने पर तलसी का भला किया है। विना उनके सदा आशा का दास हो रहा, कभी मन का लालच न गया। साधन करके क्या बनेगा यहि पारवतीजी के पति ( महादेव ) की आराधना नहीं की। [२६] जात जरे सब लोक बिलोकि त्रिलोचन सो बिष लोकि लिया है। पान कियो बिष भूषन भो, कसना-बरुनालय साँ-हियो है। मेरोई फोर जोग कपार, किधों कछु काहू लखाइ दियो है।। काहे न कान करो बिनती, तुलसी कलिकाल बिहाल किया है। अर्थ-तीनों लोकों को जले जाते देखकर महादेव ने विष को पी लिया था। वह पिया हुआ विष भी आभूषण हो गया। ऐसा महादेव का हृदय करुणा का समुद्र है। या तो मेरा हा भाग्य फोड़ने लायक है या किसी ने आपसे कुछ कह दिया है। क्यों नहीं विनवी सुनते ! तुलसी को कलि ने घबड़ा दिया है। कषित [ ३००] खायो कालकूट भयो अजर अमर तनु, भवन मसान, गथ गाँठरी गरद की। . डमरू कपाल कर, भूषन कराल ब्याल, बावरे बड़े की रीभ बाहन-बरद की ॥ - hine

  • पाठान्तर-तो।

पाठान्तर-किया है।