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टिप्पणी


१—गौतम की तीय-अहल्या। (बालकाण्ड छं० २१)

एक आश्रम में गौतम मुनि और उनकी स्त्री अहल्या दोनों रहा करते और तप किया करते थे। एक दिन जब गौतम मुनि बाहर गये तो उनकी अनुपस्थिति में इन्द्र गौतम का भेष धरकर आश्रम में आया और भोग की इच्छा प्रकट की। अहल्या ने जानकर भी भोग किया। जब इन्द्र जाने लगा तो गौतम कुटा के द्वार पर मिले। उन्होंने योग-बल से सब जान लिया और इन्द्र को शाप देकर कुटी के भीतर आकर अहल्या को भी शाप दिया कि तू सहस्र वर्ष पर्य्यन्त यहीं वायु खाकर निवास करेगी और किसी को दिखाई न पड़ेगी जब रामचन्द्र यहाँ आवेंगे सब तू लोभ और मोह-रहित होकर उनका सत्कार करेगी, तब पाप से छूटेगी और मेरे पास आवेगी। जब मिथिला को जाते हुए विश्वामित्र के साथ रामचन्द्र इस स्थान पर पहुँचे तो उन्होंने विश्वामित्र से पूछा कि यह निर्जन स्थान किसका है। तब विश्वामित्र ने ऊपर की सब कथा कही और कहा कि अहल्या तुम्हारी राह देख रही है। रामचन्द्र ने उस शिला-रूप अहल्या को पैर से छू दिया तो उसका शाप छूट गया। वह फिर स्त्री हो गई और अपने पति से जा मिली।


२—‘छत्र मिस मौलि दस दूरि कीन्हें’ ( लङ्का० छं० १०३)

जब रामचन्द्रजी सेना-सहित समुद्र पार करके सुवेल पर्वत पर ठहरे तो देखा कि एकदम रात में बिजली चमकने लगी, घटा छा गई, मेघ के गरजने का सा शब्द होने लगा। बादल चारों ओर कहीं न देखकर रामचन्द्रजी को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने पूछा कि यह क्या है तो विभीषण ने बताया कि रावण की सभा में नाच हो रहा है, छत्र बादल सा दिखाई देता है, मन्दोदरी के कर्णफूल बिजली से चमक रहे हैं और मृदङ्ग का शब्द बादल की गरज सा मालूम हो रहा है। रामचन्द्र को रावण के अभिमान पर क्रोध हुआ और उन्होंने एक बाण मारा। बाण ने छत्र, मुकुट और कर्णफूल एक साथ भूमि में गिरा दिये, किसी ने न जान पाया क्या हुआ।


३—‘बालि हू गर्व जिय माहिं ऐसो कियो’ (लङ्का० छं० १०४)

बालि सुग्रीव का भाई था, दोनों भाई प्रेम से रहते थे। बालि को वर मिला था कि जो कोई उसके सम्मुख लड़ने को आता था, उसका आधा बल उसमें आ जाता था, इस तरह बालि से कोई जीत न पाता था। एक बार एक राक्षस आया और