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(४)

गन्धमादन पर एक बार भीम गये और हनुमानजी से कहा कि अपना रूप दिखाइए। हनुमानजी ने कहा कि तुम देख न सकोगे। तब भीम ने हठ किया और हनुमानजी ने अपना रूप दिखाया। भीम डर गये और आँखों पर हाथ रख लिया।
८—आँधरो अधम इत्यादि। (उत्तर० छं० २१८)

इस छन्द का आधार बैजनाथदास ने वाराह पुराण के निम्नलिखित श्लोक को बताया है—


दैवाच्छूकरशावकेन निहतो म्लेच्छो जराजर्जरो
हा रामेति हतास्मि भूमिपतितो जल्पन्तनुं त्यक्तवान्।
तीर्णो गोष्पदवद्भवार्णवमहो नाम्नः प्रभावात्पुनः
किञ्चित्रं यदि रामनामरसिकास्ते यान्ति रामास्पदम्॥

अर्थात् एक बुड्ढे यवन ने, जिसको एक सुअर के बच्चे ने धक्का देकर गिरा दिया था, प्राण छोड़से समय हराम (सुअर, हा राम) कहकर प्राण छोड़ दिये। इसके प्रभाव से वह संसार को तर गया। भला उन आदमियों का क्या कहना है जो राम नाम के रसिक हैं अर्थात् जो श्रद्धा-सहित राम का नाम लेते हैं।
९—सुनी न कथा प्रहलाद न धू की। (उत्तर० छं० २३०)

(अ)‘प्रह्लाद’

नारद से गर्भ में राम नाम का माहात्म्य सुनकर जन्म ही से प्रह्लाद भगवद्भक्ति करने लगे। जब वे गुरु के यहाँ गये तो राम नाम ही लिखने और पढ़ने लगे और सहपाठियों को भी बताने लगे। पिता ने इसका विरोध किया और जब प्रह्लाद न माने तो उन पर शस्त्रों का प्रहार कराया परन्तु उन पर शस्त्रों का कुछ असर न हुआ। तब उन्हें पहाड़ से गिरवाया, जल में डुबाया, अग्नि में जलाया, विष दिलवाया, हाथी से दबवाया, साँप से कटवाया, परन्तु वह प्रह्लाद को न दबा सका, न राम नाम उनसे छुड़ा सका। जब गुरु ने पिता से यह सब कहा तो उसने प्रह्लाद को अपने सामने बुलाकर पूछा कि जिस भगवान् का तू स्मरण करता है वह कहाँ है। प्रह्लाद ने उत्तर दिया कि सर्वत्र। उनके पिता ने पूछा कि खम्भे में है। प्रह्लाद ने कहा, हाँ। इस प्रकार उत्तर पाकर पिता ने कहा कि अपनी रक्षा के लिए बुला, मैं तुझे मारता हूँ। यह कहकर उसने खड्ग उठाया और खम्भे में एक मुक्का मारा। इस पर भारी शब्द हुआ; खम्भे को चीरकर नृसिंह भगवान् निकल आये और असुर हिरण्यकशिपु को—अपनी गोद में लिटाकर—देहली के ऊपर सायङ्काल के समय मार डाला।