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बलवान् ग्राह में उसका पैर पकड़ लिया। दोनों में महान् शुद्ध आरंभ हुआ और १०० वर्ष पर्यन्त होता रहा। गज थक चला और उसको बहुत कुछ ग्राह जल में खींच लें गया था कि गज ने निराश होकर भगवान् की स्तुति की। तब तो भगवान् चक्र लेकर गरुड़ पर चढ़कर गज के सामने आये। उनको इस प्रकार देख गज बड़े जो़र से पुकारने लगा और एक कमल लेकर उनको अर्पण किया। भगवान गरुड़ के जाने में विलम्ब देखकर स्वयं कूद पड़े और जो तिल भर सूँँड़ जल से अपर रह गई थी उससे गज को पकड़कर ग्राह समेत जल से निकाल लिया। फिर चक्र से ग्राह का मुँह फाड़कर गज को बचा लिया। ग्राह तो अपने गन्धर्व के स्वरूप को प्राप्त हो गया और शाप से मुक्त हो गया तथा गज को भगवान् ने अपना पार्षद बना लिया।

(क) ‘गणिका’

सत्ययुग में एक गणिका ने एक सुआ पाला। उनमें परस्पर बहुत स्नेह हो गया। गणिका ने सुए को राम नाम पढ़ाया। इसी राम नाम के प्रभाव से सुआ और गणिका दोनों तर गये।

(ख) ‘अजामिल’

प्राचीन काल में अजामिल नाम का एक ब्राह्मण था जो बड़ा दुराचारी था। उसके १० पुत्र थे परन्तु उसका छोटे पुत्र पर बड़ा प्रेम था जिसका नाम नारायण था। उसका नाम वह सदा पुकारा करता था और उसी का स्मरण किया करता था। इसलिए अन्त समय भी जब यमराज के दूत उसे पकड़ने आये तो नारायण में वह ऐसा लीन था कि नारायण के पार्षदों ने उसे बचा लिया और वह आयु भोगकर नारायण के पद को प्राप्त हो गया।
१२—‘सबरी’। (उत्तर० छं० २३७)

शबरी जाति की भीलनी थी, परन्तु मतङ्ग ऋषि की सेवा किया करती थी। मतङ्ग ऋषि से उसने वर पाया कि जब त्रेतायुग में भगवान् आवेंगे तब उसे दर्शन देंगे। सीता की खोज में जब भगवान् गये तो उन्होंने शबरी को दर्शन दिया और उसके जूठे बेरों को खाया। शबरी ने उन्हें सुग्रीव का पता दिया और फिर योगाग्नि में अपने आपको जला दिया जिससे स्वर्ग पा गई।
१३—गारी देत नीच हरिचन्द हू दधीचि हूँ को। (उत्तर० छं० २४१)

(अ) ‘हरिचन्द’

हरिश्चन्द्र अयोध्या के नामी राजा, दानी और धर्मात्मा थे। इन्द्र ने द्वेष से विश्वामित्र को इनकी परीक्षा के लिए भेजा। विश्वामित्र ने स्वप्न में हरिश्चन्द्र से सब