पृष्ठ:कवितावली.pdf/२२१

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अनुक्रमणिका छन्दांक पृष्ठांक कांडांक लं० ४८ " १५ १३२ मङ्ग अङ्ग दलित ललित फूले किसुक से अति कोप सो रोप्यो है पाँव सभा अवधेस के द्वारे सकारे गई अन्तर्जामिहु तें बड़ बाहरजामि हैं अपत, सतार, अपकार को अगार जग अपराध अगाध भये जन ते अर्ध-अंग अंगना, नाम अवनीस अनेक भए अवनी उ० १२६ , ६८ १५८ १२४ २७१ २१० १४६ २६३ ,,१५१ १७० ३७ २२ २०२ आँधरो, अधम, जड़, जाजरो जरा जवन आगम बेद पुरान बखानत मागे परे पाहन कृपा, किरात, कोलनी आगे खाद साँवरो कुँवर गोरो पाछे पाछे मापु है। आपको नीके कै जानत आये सुक सारन बोलाय ते कहन लागे 'आयो आयो आयो सोई बानर बहोरि, भयो आयो हनुमान प्रान-हेतु, अंकमाल देत भारतपालु कृपालु जो राम प्रास्रम बरन कलि-बिवस बिकल भये 4 Mor व उ० १२७ ,१८५ २६८ ३२५ इहाँ ज्वाल जरे जात, उहाँ ग्लानि गरे गात __ ७२ ४५ ईसन के ईस, महाराजन के महाराज ईस' न, गनेस न, दिनेस न, धनेसन उ०१२६ , ७८ १५६ १३१ २२०