पृष्ठ:कवितावली.pdf/२२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(११)

३०४ १६ कांडांक छन्दक पृष्टक काहे को अनेक देव सेवत जागै मसान उ० १६२ किसबी किसान-कुल, बनिक, भिखारी, भाँट " १६ २३८ "कीजै कहा, जोजीजू ! सुमित्रा परि पाय कहै अ. ४ "कीन्हीं छोनी छत्री बिनु, छोनिय-छपनहार लं० २६ ११० कौबे कहा, पढ़िबे को कहा उ०१०४ कीबे को बिखेक लोक लोकपालहू ते सब कीर के कागर ज्यौं नृप चीर अ० १ . २३ कुंकुम रंग सु-अंग जितो उ०१८२ ३२२ कुंभकरन्न हन्यो रन राम लं. ५७ १४१ कुल, करतूति, भूति, कीरति, सुरूप, गुन । १४१ कृपा जिनकी कछु काज नहीं कृसगात ललात जो रोटिन को ४६ १५८ ११३ कोऊ कहै करत कुसाज दगाबाज बड़ी "१०८ २५० कोन क्रोध निरदह्यो कोपि दसकंध तब प्रलय-पयोद बोले सुं० १६ ७१ को भरिहै हरि के रितये कोखलराज के काज है। आज कौसिक की चलत, पपान की परस पायें उ० २० कोसिक विप्रबधू मिथिलाधिप १५३ कौन की हाँक पर चौक चंडीस विधि १२६ ७० २४० "४६ ११४ "११७ 3०१५८ खायो कालकूट भयो अजर अमर तनु खेती न किसान को, भिखारी को न भीख २३६ गगन निहारि, किलकारी भारी सुनि गज-बाजि-घटा भले भूरि भटा गरल-असन दिग्बसन गर्भ के अर्भक काटन को "गहन उजारि पुर जारि सुत मारि तव सुं० २८ उ० ४१ "१५० २६२ . १६८ बा० २०२० लं० २१ १०५ ६७